Vande Mataram Debate: राज्यसभा के लिए मनोनीत सांसद सुधा मूर्ति ने मंगलवार को सरकार से प्राइमरी और हाई स्कूल में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम गाना अनिवार्य करने का आग्रह किया। वंदे मातरम गीत की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक चर्चा में भाग लेते हुए मूर्ति ने कहा, “मैं यहां सांसद, सोशल वर्कर या राइटर के तौर पर खड़ी नहीं हूं। मैं यहां भारत माता की बेटी के तौर पर खड़ी हूं।”

सुधा मूर्ति ने कहा, “जब आप ट्रैवल करते हैं, तो आप अलग-अलग भाषा, अलग-अलग कॉस्ट्यूम, अलग-अलग खाने की आदतें और अलग-अलग कल्चर देख सकते हैं। लेकिन आप सभी एक इंडियन कल्चर से बंधे हैं, वह है इंडिया, भारत या इंडिया का कल्चर। इंडिया एक रजाई जैसा है। हर राज्य एक रंगीन कपड़े का टुकड़ा है और धागा और सुई वंदे मातरम, राष्ट्रीय गीत है, जो यह सब सिलता है और एक सुंदर रजाई बनाता है। अथर्ववेद में एक कहावत है, जिसका मतलब है कि हमारी मां हमारी जमीन है और हम अपनी मातृभूमि के बच्चे हैं और यह अब बहुत पुराना समय नहीं है।”

हम भारत के बच्चे हैं- सुधा मूर्ति

सुधा मूर्ति ने आगे कहा, “भारत को एक मां के रूप में देखा गया है और हम उसके बच्चे हैं। एक देश का मां के रूप में कॉन्सेप्ट, यह सीमा नहीं है, यह मैप नहीं है, यह झंडा नहीं है। भारत, हमारी जमीन का मां के रूप में कॉन्सेप्ट बहुत कम देशों में है, जिसके बारे में हमारे साथी डॉ. राधा मोहनजी ने भी बात की कि हम अपने देश को अपनी मातृभूमि के रूप में एक मां के रूप में देखते हैं।”

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सुधा मूर्ति ने कहा, “यह सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा नहीं है। आप अपनी मां को कैसे डिफाइन करते हैं, केयर, प्यार, स्नेह, बिना शर्त स्नेह। मैं हमेशा मजाक में कहती हूं कि जिंदगी में मां के प्यार को छोड़कर हर चीज की कीमत होती है और यही भारत ने हमें दिया है। जब भारत पर हजारों सालों तक कई लोगों का राज था और हमने अपना सेल्फ-कॉन्फिडेंस खो दिया, हमने अपनी हिम्मत खो दी, हम हार गए और हमने कभी अपनी सेल्फ-वर्थ के बारे में नहीं सोचा, हम सच में बहुत उदास थे। उस समय, यह गाना वंदे मातरम सामने आया।”

सुधा मूर्ति ने आगे कहा, “मैं हुबलीसर नाम के एक छोटे से शहर से आती हूं। मेरे दादाजी मुझे बताते थे कि एक प्रभात फेरी थी, उस समय ब्रिटिश राज के लिए हमेशा एक तरह का विरोध होता था, क्योंकि वंदे मातरम से शुरू होने वाला एक गाना होता था। वंदे मातरम एक जादुई टच था और यह किसी भी कायर इंसान को भी खड़ा कर देगा और हिस्सा लेने पर मजबूर कर देगा।”

स्कूल में कम्पलसरी किया जाना चाहिए वंदे मातरम

सुधा मूर्ति ने कहा, “हमारे स्कूल में हम अपने बच्चों को राष्ट्रगान सिखाते हैं। वंदे मातरम सिखाने में तीन मिनट से भी कम समय लगता है और हम वह नहीं सिखा रहे हैं। समय के साथ, हमारे बच्चे वंदे मातरम का पूरा पाठ भूल जाएंगे। वंदे मातरम आजादी के लिए हमारे संघर्ष को दिखाता है। हमें आजादी चांदी की थाली में परोसी हुई नहीं मिली। लोगों ने कुर्बानी दी है। मैं एजुकेशन डिपार्टमेंट से रिक्वेस्ट करती हूं, खासकर स्कूल और हाई स्कूल लेवल पर फॉर्मेटिंग ईयर में इसे जनगण मनम के साथ कम्पलसरी किया जाना चाहिए, ताकि हमारे बच्चों को सभी स्टांस याद हों।”

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