सीबीआई की टीम अभिषेक बनर्जी के घर गई तो बगैर देर किए बंगाल की सीएम ममता अपने भतीजे के परिवार के पास चली गईं। सीएम अभिषेक की बेटी का हाथ थामे दिखीं। मतलब साफ था, चाहे कोई कुछ भी कहे, उनका हाथ हमेशा भतीजे के साथ है। हालांकि, तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि जब से भतीजे को ममता ने पार्टी की रणनीति बनाने का कमान सौंपी, तृणमूल को नुकसान ही उठाना पड़ा है। बावजूद इसके डायमंड हार्बर के एमपी अघोषित तौर पर पार्टी के सेकेंड इन कमान बने हुए हैं।

ममता के भाई अमित बनर्जी के बेटे अभिषेक उस वक्त लाइम लाइट में आए जब तृणमूल पहली बार सत्ता में आई। 2011 में पहली बार उन्हें सक्रिय तौर पर ममता के इर्द गिर्द देखा गया। उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल की थी। 2014 में सोमेन मित्रा नाराज हुए तो डायमंड हार्बर की सीट खाली हो गई। ममता ने अभिषेक को चुनाव मैदान में उतार दिया। अभिषेक ने सीट जीती और 26 साल की उम्र में सांसद बन गए। वह उस समय लोकसभा के सबसे युवा सांसद थे। उसके बाद उनका कद बढ़ता गया।

अभिषेक का राजनीतिक करियर जितना तेजी से आगे बढ़ा, ममता की मुश्किलों में उतना ही इजाफा हुआ। उनकी वजह से पहले मुकुल रॉय ने पार्टी को अलविदा कहकर बीजेपी का दामन थाम लिया। अभिषेक से पहले उन्हें ममता के बाद सेकेंड इन कमांड माना जाता था। भतीजे के आने के बाद मुकुल के पर कतरे जाने लगे तो उन्होंने तृणमूल से बाहर निकलने का फैसला किया। यह पहला झटका था जो 2017 में ममता को भतीजे की वजह से लगा।

2019 में अभिषेक का कद और ज्यादा बढ़ गया। लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने का काम उन्हें जो सौंपा गया था। लेकिन यहां पहली बार ममता को तगड़ा झटका लगा। असेंबली चुनाव में महज तीन सीट जीतने वाली लोकसभा में बीजेपी 18 सीटों तक जा पहुंची। तृणमूल की सीटें घटकर 34 से 22 रह गईं। हालांकि, अभिषेक जी जान से तृणमूल को उठाने में लगे हैं। यही वजह है कि 2021 असेंबली चुनाव के लिए वह प्रशांत किशोर को बंगाल लेकर आए। उन्हें लगता है कि कठिन समय में प्रशांत ही उनका संबल हैं। उनकी रणनीति के सहारे तृणमूल बीजेपी को हरा सकती है।

तृणमूल की युवा शाखा के चीफ अभिषेक अपनी इमेज को लेकर खासे सतर्क रहते हैं। वह अपने चुनाव क्षेत्र में हर साल स्पोर्ट्स इवेंट कराते हैं। फिलहाल अभिषेक बीजेपी के सीधे निशाने पर हैं। बीजेपी के नेताओं को पता चल गया कि अभिषेक ममता की सबसे बड़ी कमजोरी हैं। लिहाजा उन्हें निशाना बनाकर वह ममता को नुकसान पहुंचाना चाहती है। यह भी सच है कि उनकी वजह से ही तृणमूल को सुवेंदु अधिकारी और सौमित्र खान जैसे नेताओं को खोना पड़ा। हालांकि, अभिषेक इन बातों से इनकार करते हैं कि वह पार्टी के नंबर दो हैं। उनका कहना है कि ऐसा होता तो उनके पास 35 पोस्ट होतीं। उनका तो यहां तक कहना है कि अगर बीजेपी से आरोप सच निकलते हैं तो वह जनता के बीच जाकर खुद अपनी जान ले लेंगे।