दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को एक बार फिर से नागपुर सेंट्रल जेल की अंडा सेल में रखा गया है। 90 फीसदी अक्षम साईबाबा को 25 दिसंबर को इस सेल में शिफ्ट किया गया। इससे पहले भी वे इसी सेल में थे। हाल ही में उन्होने जेल सुपरिटेंडेंट को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि उन्हें दी जाने वाली कुछ निश्चित मेडिकल और खाद्य सुविधाएं हटा दी गई हैं जिसके चलते उन्हें काफी कठिनाई हो रही है। पिछली बार जेल में रहने के दौरान साईबाबा को लंबी लड़ाई के बाद यह सुविधाएं दी गई थी।
साईबाबा ने अपने खत में लिखा कि उन्हें नहाने और पीठ, बाएं हाथ व पैरों के दर्द में आराम के लिए गर्म पानी चाहिए होता है। पहले मुझे यह सुविधा दी गई थी। एक बार फिर से यह सुविधाएं दी जाए इनके बिना मुझे काफी परेशानी हो रही है। खत में साईबाबा ने जिक्र किया है कि कुछ बीमारियों के कारण वे सामान्य खाना नहीं खा पाते हैं। इसके चलते अंडे, दूध, नरम खाना, फल और मेवे उन्हें मुहैया कराए जाए जो कि पहले भी दिए जाते थे। एक अन्य पत्र में साईबाबा ने लिखा कि वे उच्च् रक्तचाप और दिल की बीमारी से ग्रसित है। जेल की घटिया कंडीशन के चलते उनके गाल ब्लेडर और किडनी में पथरी हो चुकी है, उनकी पीठ डिसलोकेट हो चुकी है और बाएं हाथ ने काम करना बंद कर दिया है। गौरतलब है कि साईबाबा पोलियो से ग्रसित हैं।
साईबाबा के पत्रों के बारे में उनकी पत्नी वसंता बताती हैं कि साईबाबा के साथ किया जा रहा अमानवीय व्यवहार दर्शाता है कि सरकार उनकी आवाज दबाना चाहती है। जेल प्रशासन की असंवेदनशीलता के साथ ही यह सरकारी मशीनरी के उनकी आवाज को दबाने के प्रयास को दिखाता है। यह साईबाबा के साथ केवल अमानवीय व्यवहार ही नहीं है बल्कि संविधान की ओर से दिए गए सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन है।