Saints Comments on Mahakumbh Stampede: महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान के दौरान मची भगदड़ और उसके कारण हुई मौतों ने संत समाज को दो धड़ों में बांट दिया है। इस घटना पर बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री और शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के बीच तीखी बयानबाजी छिड़ गई है।
भगदड़ में मारे गए श्रद्धालुओं को लेकर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि वे मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। उनका तर्क था कि संगम में स्नान के दौरान मृत्यु होना सौभाग्य की बात है, क्योंकि यह आत्मा के परमगति प्राप्त करने का स्थान है। उन्होंने कहा, “यह महाप्रयाग है, जहां मृत्यु मोक्ष के समान होती है। जो गंगा के किनारे मरते हैं, वे वास्तव में मरते नहीं, बल्कि मोक्ष पाते हैं।”
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दी कड़ी प्रतिक्रिया
धीरेंद्र शास्त्री के इस बयान पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “अगर मृत्यु को मोक्ष कहा जाए, तो फिर धीरेंद्र शास्त्री खुद क्यों नहीं मोक्ष प्राप्त कर लेते? अगर वे तैयार हों, तो हम धक्का देकर उन्हें भी मोक्ष दिलाने को तैयार हैं।” उन्होंने भगदड़ में मारे गए लोगों को लेकर कहा कि यह एक हृदयविदारक घटना है और इसे मोक्ष कहकर टालना ठीक नहीं। शंकराचार्य ने तीखे शब्दों में कहा कि कुचलकर और दम घुटकर मरने वाले निर्दोष श्रद्धालुओं की मृत्यु को मोक्ष बताना असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है।
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इस मुद्दे पर संत समाज भी दो धड़ों में बंटता नजर आ रहा है। कुछ संत धीरेंद्र शास्त्री के समर्थन में हैं और मानते हैं कि आस्था के अनुसार गंगा किनारे मृत्यु को मोक्ष प्राप्ति माना जाता है। वहीं, कुछ संत शंकराचार्य की राय से सहमत हैं कि प्रशासनिक लापरवाही से हुई मौतों को धार्मिक जामा पहनाना अनुचित है।
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मौनी अमावस्या के दिन संगम नोज पर हुई इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है, जबकि 60 से अधिक श्रद्धालु घायल हुए। घटना के बाद सरकार और प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दलों और कई संतों ने इसे सरकारी लापरवाही करार दिया है।
इस घटना की गंभीरता को देखते हुए तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया गया है, जिसने प्रयागराज पहुंचकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और अस्पताल में भर्ती घायलों से मुलाकात की। आयोग को जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपनी है, जिससे पता चलेगा कि भगदड़ के पीछे असल कारण क्या था और किनकी लापरवाही जिम्मेदार है।
महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में हुई इस घटना ने न केवल प्रशासन पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि संत समाज में भी गंभीर मतभेद उजागर कर दिए हैं। जहां एक ओर कुछ संत इसे आस्था से जोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसे लापरवाही और असंवेदनशीलता करार दिया जा रहा है। इस विवाद ने महाकुंभ के आध्यात्मिक माहौल को भी प्रभावित किया है, जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचाव के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत महसूस की जा रही है।