नोटबंदी को हुए 50 दिन से ज्यादा बीत गए हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि इस फैसले से सभी प्रभावित हुए हैं, लेकिन इसकी मार दिहाड़ी मजदूरी पर काम करने वालों और रेहड़ी -पटरी वालों पर बुरी तरह से पड़ी है। मजदूर, पम्बर, बढ़ई, पेंटर, सब्जी वाले या और भी कई रेहड़ी-पटरी वालों का गुजारा छोटी रकम की लेनदेन पर चलता है। ऐसे में कैश बंद होने से उनका काम आधा या आधे से भी कम हो गया है। पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके की विजय चौक मार्केट में रोज सुबह कई मजदूर काम की तलाश में चौराहों पर बैठ जाते हैं।
इनमें बिल्डिंग बनाने वाले राजमिस्त्री से लेकर, लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई तक होते हैं। इनकी दिहाड़ी 100 रुपये से लेकर 800-1000 तक की होती है। ऐसे में छोटी रकम के लेनदेन पर यह निर्भर हैं और कैश की किल्लत ने इनके काम पर बुरा असर डाला है। ज्यादातर मजदूर अलग-अलग राज्यों से आए हैं। इनमें से कई लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते और कई के बैंक खाते भी नहीं है, ऐसे में ये स्मार्ट फोन नहीं रखते और अगर रखते भी हैं तो, पेटीएम, फ्रीचार्ज जैसी डिजिटल सेवाओं का फायदा भी नहीं उठा पाते।

