नोटबंदी जैसा बड़ा आईडिया सोचने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने इस प्लान में अपने साथ ऐसे नौकरशाहों को शामिल किया जो उनके विश्वासपात्र थे और अन्य ऐसे लोगों को लिया जो भारत के वित्तीय हलकों में कम हस्तक्षेप रखते थे। नौकरशाह हसंमुख अधिया के साथ पांच और लोगों ने पीएम आवास पर शपथ खाई थी कि वह नोटबंदी के फैसले को लागू ना हो जाने से पहले तक अपने तक ही सीमित रखेंगे। उन लोगों के साथ कुछ युवा शोधकर्ताओं की एक टीम भी थी जो कि 2014 में मोदी की सरकार बनने के बाद लिए जाने वाले सबसे बड़े फैसले के लिए पीएम आवास के ही दो कमरों में काम कर रही थी। गोपनीयता में भी इस बात का खास ध्यान रखा गया था कि उन लोगों को किसी हाल में भनक ना पड़ जाए जो पहले से पता होने पर पैसे को गोल्ड में बदलकर, जमीन खरीदकर या फिर कुछ और जुगाड़ कर सकते थे।
रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, तैयारियों के वक्त शोध में यह सब परेशानी निकलकर आई थीं जो कि इस वक्त लोग महसूस कर रहे हैं। जैसे ज्यादातर लेबर को सैलरी कैश में मिलती है, ज्यादा काला धन आ सकता है, धंधे ठप्प पड़ सकते हैं लेकिन पीएम मोदी इसे लागू करने का मन बना चुके थे। उन्होंने संसदीय मीटिंग में कहा था, ‘मैंने सारी रिसर्च कर ली है। अगर यह फेल होता है तो सारी जिम्मेदारी और दोष मेरा होगा।’ मीटिंग में शामिल होने वाले तीन मंत्रियों ने ही इस बात की जानकारी दी है। खबर के मुताबिक, मोदी ने ऐसा करके अपनी साख और लोकप्रियता को दांव पर लगा दिया था।
पूरे प्लान में सबसे उच्च लेवल के अधिकारी हंसमुख अधिया ही थे। 58 साल के हंसमुख 2003-06 तक पीएम मोदी के प्रधान सचिव रह चुके हैं। कहा जाता है कि हंसमुख ने ही मोदी को योगा करने की आदत डाली थी। हंसमुख को 2015 में राजस्व सचिव बनाया गया था। उनका काम वित्त मंत्री अरुण जेटली को रिपोर्ट करना था। लेकिन असल में वह सीधा पीएम मोदी से बात करते थे। जिस वक्त दोनों किसी खास मुद्दे पर बात करते थे तो गुजराती में बोलने लगते थे।
हालांकि, पूरी तरह से गोपनीयता बनाकर रखी गई थी लेकिन फिर भी कुछ-कुछ ऐसी बातें सामने आई थीं जिनसे नोटबंदी का अंदेशा हो गया था। जैसे अप्रैल में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कुछ विश्लेषकों ने कहा था कि बड़े नोटों को बंद किया जा सकता है। वहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी मई में बताया था कि नई सीरीज के नोट बनने वाले हैं। अगस्त में पक्का हो गया था कि 2000 रुपए के नए नोट के डिजाइन को मंजूरी दे दी गई है। अक्टूबर में नोट के बारे में बातें भी शुरू हो गई थीं। उस वक्त प्रेस ने नोट छापने शुरू ही हुए थे।
खबर के मुताबिक पहले नए नोटों को 18 नवंबर से ही शुरू किए जाने के बारे में सोचा जा रहा था लेकिन फिर प्लान लीक होने के डर से प्लान को ड्राप कर दिया गया। हंसमुख को पीएम द्वारा चुने जाने के लिए वित्त मंत्रालय के कुछ लोग नाराज भी हैं और कहते हैं कि प्लान फेल हो गया क्योंकि वक्त पर नोट छप ही नहीं पाए।
