दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुस्मृति पढ़ाने को लेकर विवाद बढ़ गया है। लॉ फैकल्टी के उस प्रस्ताव को अब कुलपति योगेश सिंह ने खारिज कर दिया है। उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों को मनुस्मृति नहीं पढ़ाई जाएगी। अब जानकारी के लिए बता दें डीयू की लॉ फैकल्टी ने सर्व सहमति से यह प्रस्ताव जारी किया था जिसमें कहा गया कि तीसरे साल के छात्रों को मनुस्मृति के दो अध्याय पढ़ाए जाएंगे, लेकिन उस एक प्रस्ताव के बाद से ही विवाद शुरू हो गया था, कई शिक्षकों ने इस पर आपत्ति जताई।
आखिर इतना विरोध क्यों हो रहा था?
बड़ी बात यह है कि वाम समर्पित सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने तो यहां तक कह दिया था कि मनुस्मृति अगर पढ़ाई जाएगी तो यह प्रोग्रेसिव एजुकेशन सिस्टम के खिलाफ होगा। यहां तक कहां गया कि इस प्रकार का बदलाव देश के संविधान का भी एक अपमान है। अब उन आपत्तियों को गंभीरता से समझने के बाद कुलपति ने लॉ फैकल्टी के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
महिलाओं को लेकर क्या आपत्ति?
मनुस्मृति का विरोध करने वाले लोगों का यहां तक कहना है कि उसमें महिलाओं का अपमान किया गया ,है उनकी समानता का सम्मान नहीं किया गया है। अभी तक लॉ फैकल्टी में कुलपति योगेश सिंह के इस फैसले के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है वह इसको लेकर विरोध प्रदर्शन हो सकता है और टकराव की स्थिति भी बन सकती है।
क्या है यह मनुस्मृति?
मनुस्मृति की बात करें तो हिंदू धर्म में इसकी काफी अहमियत है। यह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है और आज भी कई लोग इसमें लिखी बातों को शिद्दत से मानते हैं। लेकिन इसका विरोध करने वाले इस ग्रंथ को सिर्फ जाति की नजर से देखते हैं और बांटने वाला बता जाते हैं।