हाल ही में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि रक्षा सौदों में किस तरह से देरी हो रही है, जिसका असर देश की सुरक्षा पर पड़ रहा है। दरअसल इन दिनों देश में राफेल डील का मुद्दा छाया हुआ है। इस संबंध में कैग ने एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कैग ने एक अन्य डील का जिक्र किया है, जिसके तहत भारतीय वायुसेना को 11 डोप्लर वेदर रडार की खरीद करनी थी। लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी यह डील पूरी नहीं हो सकी है। हैरानी की बात ये है कि इस दौरान डोप्लर वेदर रडार के लिए भारतीय मौसम विभाग ने भी डील की और साल 2010 में ही सिर्फ 11 माह के कम समय में रडार हासिल भी कर लिए। वहीं भारतीय वायुसेना को मिलने वाले 11 रडार में से पिछले 13 सालों में सिर्फ 3 रडार मिले हैं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि डोप्लर वेदर रडार की गैरमौजूदगी में भारतीय वायुसेना मैन्युल विजुअल से काम चला रही है।
कैसे बीते साल दर सालः इकॉनोमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार, साल 2004 में डिफेंस एक्वीजीशन काउंसिल ने 11 डोप्लर वेदर रडार की खरीद के प्रोजेक्ट को क्लीयर किया था। यह डील 143 करोड़ रुपए में हुई। कुछ माह बाद इस डील को संशोधित कर 165 करोड़ में फाइनल कर दिया गया। लेकिन इस दौरान एक साल का समय निकल गया। दूसरी दिक्कत तब आयी, जब डील के लिए सिर्फ 2 कंपनियों जर्मनी की Selex Sistemi और अमेरिका की Enterprise Electronics Corporation ने ही बोली लगायी। लेकिन दोनों ही कंपनियां भारतीय वायुसेना की जरुरी दो जरुरतों को पूरा नहीं कर रहीं थी। दरअसल पहली जरुरत थी कि रडार 100 मीटर या उससे कम की रेंज का होना चाहिए और दूसरा वह मिलिट्री स्टैंडर्ड का होना चाहिए। इस पर दोनों वेंडर ने बताया कि रडार की कम से कम रेंज 300 मीटर होती है और दूसरा यह एक कमर्शियल इक्वीपमेंट है ना कि मिलिट्री इक्विपमेंट।
उल्लेखनीय है कि बाद में यहां एक बड़ी गलती हुई। दरअसल रडार की रेंज 1000 मीटर या उससे कम मांगी गई थी, लेकिन एक जीरो कम लिखे जाने के चलते यह पूरी गड़बड़ हुई। इस गलती को ठीक करने में 3 साल लग गए। इसके बाद कुछ देर और लगी और आखिरकार साल 2011 में डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट नेगोसिएशन कमेटी का गठन किया गया। वहीं भारतीय मौसम विभाग ने साल 2009 में 2 डोप्लर वेदर रडार के लिए डील की और साल 2010 में वह डील पूरी भी कर ली। भारतीय वायुसेना की डील थोड़ा आगे ही बढ़ी थी कि एक और दिक्कत आ गई। दरअसल रडार आपूर्ति करने वाली कंपनी Selex Sistemi के नाम एक सौदे के चलते कुछ बदलाव हो गए। कंपनी ने साल 2014 में नाम में बदलाव संबंधी जानकारी रक्षा मंत्रालय को दी, जिसके बाद डील में नाम बदलते बदलते 2 साल और बीत गए। अब साल 2017 में भारतीय वायुसेना को 11 में से 3 रडार की आपूर्ति हुई है और 8 रडार की अभी और आपूर्ति होनी है।