गुलबर्ग सोसायटी में हुए नरसंहार में दोषियों को सजा देते हुए स्पेशल कोर्ट ने एक टिप्पणी भी की है। इसमें कहा गया है कि जिस भीड़ ने 69 लोगों की जान ली उनका मकसद जान लेना नहीं था बल्कि वे लोग पूर्व सांसद एहसान जाफरी के गोली चलाने की वजह से हिंसक हो गए थे। कोर्ट ने यह बात शुक्रवार (17 जून) को कही। 17 जून को कोर्ट की तरफ से 24 में से 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी गई। इनके अलावा एक को 10 साल की सजा और बाकी 12 को 7 साल की सजा सुनाई गई है।
स्पेशल कोर्ट के जज पीबी देसाई के फैसले में लिखा है, ‘गुस्साई भीड़ गुलबर्ग सोसायटी के बाहर से पथराव कर रही थी और वहां खड़ी गाड़ियों को जलाने के साथ-साथ अल्पसंख्यक लोगों के घर को भी नुकसान पहुंचा रही थी’
फैसले में आगे कहा गया, ‘जैसे ही एहसान जाफरी की तरफ से गोली चलाई गई भीड़ हिसंक दंगाईयों में बदल गई और उन्होंने इतने भयंकर नरसंहार को अंजाम दिया।’
इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात को खारिज कर दिया कि एहसान जाफरी ने कुछ नहीं किया था और वह बस घर में चुपचाप बैठे थे। इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात को भी मानने से इंकार कर दिया कि जाफरी ने गोली अपने बचाव में चलाई थी। कोर्ट ने कहा, ‘उनकी फायरिंग में 15 लोग जख्मी हुए थे। उनमें से एक शख्स गंभीर रुप से घायल था।’
वहीं दूसरी तरफ सजा सुनाए जाने के बाद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने कहा, ”मैंने मासूम लोगों का बेरहमी से कत्ल होते देखा है, कोर्ट ने नहीं। मैं फैसले से खुश नहीं हूं क्योंकि सभी दोषियों को उम्रकैद होनी चाहिए। वे पूरी तैयारी के साथ आए थे और मासूम लोगों पर हमला किया। लड़ाई अभी भी जारी है और न्याय मिलने तक लड़ाई जारी रहेगी।
28 फरवरी 2002 को हजारों की हिंसक भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी पर हमला कर दिया था। गुलबर्ग सोसायटी में सिर्फ एक पारसी परिवार के अलावा बाकी सभी मुस्लिम रहते थे।