कोरोना और लॉकडाउन के चलते चरमरा गई अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए राज्यों को शराब सबसे बड़ा सहारा नजर आ रहा है। कई राज्यों ने 70-75 फीसदी टैक्स लगा कर कमाई और बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है। ऐसे में उन राज्यों में भी यह उपाय अपनाने की मांग उठने लगी है, जहां शराबबंदी है। बिहार में काँग्रेस की ओर से ऐसी मांग उठ रही है। भागलपुर के कांग्रेसी विधायक अजित शर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राज्य में शराब की दुकानें फिर से खोलने की मांग की है। पत्रकारों को उन्होंने कहा कि चार साल की शराब बंदी के दौरान आदती पीने वाले छोड़ चुके होंगे। इसलिए राजस्व की कमाई के लिए शराबबंदी खत्म होनी चाहिए। राज्य की आर्थिक हालत को देखते हुए मुख्यमंत्री को इस पर फिर से विचार करना चाहिए।
शराबबंदी किए जाने से पहले,साल 2015-2016 के बजट में बिहार सरकार ने इस मद से 4001 करोड़ रुपए आमदनी का लक्ष्य रखा था। लक्ष्य का 96 फीसदी आबकारी टैक्स हासिल भी कर लिया था। 5 अप्रैल 2016 से सरकार ने राज्य ने पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दी। यदि यहां बंदी नहीं होती तो यह राजस्व बढ़कर दस हजार करोड़ का हो गया होता। बगल के राज्य पश्चिम बंगाल ने साल 2018-19 में इस मद से 10554.36 करोड़ रुपए कमाए हैं। राज्यों के लिए शराब की कमाई इसलिए भी अहम है क्योंकि आबकारी टैक्स पर अकेले राज्य सरकार का हक होता है।
कोरोना और घरबंदी की वजह से आई आर्थिक परेशानी की भरपाई का कोई स्रोत नजर नहीं आ रहा है। वह केंद्र सरकार की मदद या ऋण शोधन कोष से कर्ज लेने पर निर्भर दिख रही है। तभी राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण शोधन कोष (सिंकिंग फंड) से सात हजार करोड़ रुपए निकासी के लिए इजाजत मांगी है। ऐसा भरोसे लायक सूत्र बताते हैं। इस बाबत उनका बयान भी आया था।
घरबंदी की वजह से व्यापार भी करीब दो महीने से बंद है। माल और सेवा कर ( जीएसटी ) के तौर पर प्राप्त होने वाले टैक्स भी जमा नहीं हो रहे है। केंद्र सरकार भी इसके नुकसान भरपाई की रकम देने में देरी कर रही है। नतीजतन बिहार की आर्थिक हालत पतली हो गई है।
कहते है कि तस्करी कर राज्य में शराब बिक रही है। कई दफा थानों से बिक्री करते पुलिस अधिकारी पकड़े गए है। तस्कर मालामाल है। करोड़ों की शराब पकड़ी भी गई है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा बिकी है। और बिक रही है। इस बात का पता सरकार को भी है। बंदी के बाद एक लाख से ज्यादा एफआईआर हुई है। इतने ही पकड़े गए है। फिर भी बिक्री चोरी छुपे हो रही है। और सरकार को राजस्व का शुद्ध घाटा हो रहा है।
सुशासन बाबू की सरकार तीन टर्म यानी 15 साल पूरा करने को है। इसी साल चुनाव होने है। कोई नया उद्योग राज्य में नहीं लगा है। ऊपर से कोरोना के कहर से राज्य की आर्थिक हालात डावाडोल है। साथ ही मजदूर-छात्र सब परेशान है। खुदरा दुकानदार बर्बादी के कगार पर है। बिहार सरकार इस मंथन में पड़ी है कि राजस्व बढ़ाने का क्या रास्ता अपनाया जाए? नगर निगम का हाउस टैक्स, संपत्ति टैक्स, स्टाम्प ड्यूटी किस्में इजाफा किया जाए?
