2015 में वजूद में आने के बाद से स्‍वच्‍छ गंगा निधि (Clean Ganga Fund) में 86 प्रतिशत योगदान सरकारी संस्‍थाओं ने किया है। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत द इंडियन एक्‍सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, एनआरआई और भारतीय मूल के व्‍यक्तियों (PIO) से मिला अंशदान कुल रकम के दो प्रतिशत से भी कम है। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा दिए गए दस्‍तावेजों से पता चलता है कि 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 (30 सितंबर तक) में ”सरकारी विभागों, सरकारी संगठनों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों”ने स्‍वच्‍छ गंगा निधि के लिए कुल 163.49 करोड़ रुपये दिए। यह कुल रकम का 86.42 प्रतिशत है।

दस्‍तावेजों के अनुसार, इसी अवधि में ”निजी संगठनों” से 19.54 करोड़ रुपये मिले जो कुल योगदान का 10.32 प्रतिशत रहा। एनआरआई और भारतीय मूल के व्‍यक्तियों से 3.76 करोड़ रुपये प्राप्‍त हुए। ”व्‍यक्तिगत” श्रेणी के तहत 2.37 करोड़ रुपये मिले, जो पूरी निधि का 1.25 प्रतिशत है। RTI दस्‍तावेजों के अनुसार, स्‍वच्‍छ गंगा निधि में अभी 234.98 करोड़ रुपये उपलब्‍ध हैं।

केंद्रीय कैबिनेट ने 24 सितंबर, 2014 को स्‍वच्‍छ गंगा निधि को हरी झंडी थी, इसका गठन जनवरी, 2015 में हुआ। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के तहत स्‍वच्‍छ गंगा के लिए राष्‍ट्रीय मिशन इसका प्रबंधन देखता है। स्‍वच्‍छ गंगा निधि की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह निधि ”सबके लिए- घरेलू और अंतरराष्‍ट्रीय (NRI तथा PIO) खुली है।”

जब स्‍वच्‍छ गंगा निधि की स्‍थापना हुई, तब मंत्रालय ने कहा था कि इसका गठन ”गंगा नदी के संरक्षण के प्रति योगदान को उत्‍साहित देश के नागरिकों तथा NRIs/PIO के स्‍वैच्छिक सहयोग” से किया जाएगा।

जुलाई में एक अन्‍य आरटीआई के जवाब में मोदी सरकार ने कहा था कि उसे पता ही नहीं, गंगा अब तक कितनी साफ हुई है। सरकार गंगा की सफाई पर अब तक 3,800 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। यह पैसा कहां और किस मद में खर्च हुआ, सरकार इसका ब्‍यौरा नहीं दे सकी। मोदी सरकार ने 2020 तक 80 फीसदी गंगा साफ करने का लक्ष्य रखा है।