भारतीय संविधान के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘लोकसत्ता व्याख्यान’ पहल की शुरूआत की की गई है। व्याख्यान के पहले वक्ता के तौर पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने संघवाद से जुड़े विषय -Understanding Federalism and Its Potential- पर अपनी बात रखी। सीजेआई के विषय पर अपने विचार पेश करने के बाद लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर ने उनका इंटरव्यू भी किया है, जिसमें उन्होंने अपने बचपन के कई किस्से सुनाए हैं।
‘मुझे भी डंडे से पड़ती थी मार’
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से जब इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि ‘चीफ जस्टिस के बेटे के तौर पर आपका बचपन कैसा बीता? क्या आपको भी स्कूल में डंडे पड़े हैं?’
इसके जवाब में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल खोलकर जवाब दिए। उन्होंने कहा, “मुझे भी स्कूल में डंडे पड़े हैं। इस वजह से सात-आठ दिन तक मेरा हाथ दर्द करता रहा। माता-पिता के डर से मैंने सात-आठ दिन तक अपने हाथ उनसे छिपाए रखे।”
धन को नहीं, ज्ञान को महत्व दें
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ आगे कहा, “हमारे माता-पिता की ओर से कोई दबाव नहीं था। उनकी एकमात्र आशा ज्ञान की पूजा करना था। मां ने कहा था कि तुम्हारा नाम धनंजय रखा है। लेकिन यह धन का धन नहीं है, ज्ञान को महत्व दें। उन्होंने कभी दबाव नहीं डाला। उन्होंने अपने जीवन का उदाहरण हमारे सामने रखा।”
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‘एक दिन किसी ने तबला छिपा दिया’
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ कहा, “मैं तबला बजाता था, मैंने गाना भी सीखा था। कई राग भी सीखे थे। लेकिन एक बार अचानक तबला गायब हो गया। मैंने तबला हर जगह खोजा। लेकिन किसी ने छिपा दिया था। बाद में बहन ने बताया कि पिता को लगा कि मैं तबला बजाने की राह पर हूं। लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि यह जाकिर हुसैन जैसा भी बन सकता है।” सीजेआई ने आगे कहा कि आजकल के माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा 99 प्रतिशत नंबर लाए, यह नहीं कि वह संगीत वाद्ययंत्र बजाना चाहिए, तैराकी सीखनी चाहिए।”