श्रमिक नेता दत्ता सामंत की हत्या वाले मामले में डॉन छोटा राजन को बरी कर दिया गया है। सीबीआई कोर्ट ने कई सालों बाद इस मामले में छोटा राजन को बरी किया है। ये हाई प्रोफाइल मामला 26 साल पुराना है जब यूनियन लीडर दत्ता सामंत को गोली मार दी गई थी। आरोप ये था कि छोटा राजन उस हत्या में पूरी तरह शामिल था। सीबीआई ने इस मामले की कई सालों तक जांच की, लेकिन अब जब कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला तो छोटा राजन को रिहा कर दिया गया।

क्या है ये पूरा मामला?

जानकारी के लिए बता दें कि 16 जनवरी, 1997 को दत्ता सामंत को मारा गया था। कुल चार आरोपियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया था। वे जिस समय अपनी जीपु से पवाई से घाटकोपर जा रहे थे, मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने फायरिंग कर दी। उस वारदात में उनकी गर्दन और चेहरे पर गोली लगी। पास के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

घटना के तुरंत बाद सामंत के ड्राइवर भीमराव सोनकांबले ने ही पुलिस को सूचित किया और इस मामले में शिकायत दर्ज हुई। वैसे इस मामले में छोटा राजन के अलावा गुरु साटम और रोहित वर्मा जैसे गैंगस्टरों का नाम भी सामने आया। लेकिन मुख्य आरोपी छोटा राजन को ही बनाया गया था, सीबीआई को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत मिल जाएंगे। कई मौकों पर सवाल-जवाब किए गए थे, कई और लोगों से पूछताछ हुई थी। लेकिन राजन की सीधी भूमिका एक बार भी सामने नहीं आ पाई।

जेल से बाहर आएगा छोटा राजन?

वैसे यहां ये समझना जरूरी है कि छोटा राजन को इस मामले में बरी जरूर कर दिया गया है, लेकिन उनका जेल से बाहर निकलना मुश्किल ही लगता है। इसका कारण ये है कि छोटा राजन एक नहीं कई और गंभीर मामलों में आरोपी है, ऐसे में एक केस में राहत मिलने से उसकी जेल यात्रा समाप्त नहीं होने जा रही है।

कौन हैं दत्ता सामंत?

वहीं बात अगर दत्ता सामंत की करें तो वे पेशे से एक डॉक्टर थे, लेकिन साल 1982 में बंबई की कपड़ा मिलों की जो हड़ताल हुई थी, उसक अगुवाई उन्होंने ही की। बताया जाता है कि अपने जमाने में दत्ता सामंत एक बड़े श्रमिक नेता बन गए थे। मजदूरों का वेतन बढ़ाने को लेकर उन्होंने एक नहीं कई आंदोलन किए। इसी में 1982 वाली हड़ताल सबसे बड़ी रही जिसमें करीब दो लाख कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। मांग की गई थी कि न्यूनतम वेतन 670 रुपए से बढ़ाकर 940 रुपए कर दिया जाए। लेकिन जब उस मांग को खारिज कर दिया गया, तब एक हड़ताल शुरू हुई जो पूरे दो साल तक चलती रही।

उस एक आंदोलन ने दत्ता सामंत को मशहूर बना दिया था और दूसरे कई मिल कर्मचारी भी उनके समर्थन में आ खड़े हुए थे। माना जाता है कि उनकी उन्हीं हड़तालों की वजह से उनकी हत्या भी की गई। लेकिन इसे लेकर कभी पुख्ता तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सका।