विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रहे पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और असम समेत विभिन्न राज्यों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के एक आदेश में शुक्रवार को संशोधन कर दिया। साथ ही सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों और मंत्रियों की तस्वीरें लगाने की अनुमति दे दी। अदालत ने पिछले साल अपने फैसले में कहा था कि सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रधान न्यायाधीश की तस्वीरें सरकारी विज्ञापनों में लगाई जा सकती हैं। इस फैसले को बाद में केंद्र सरकार और सात राज्य सरकारों ने चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पीसी घोष की पीठ ने कहा कि 13 मई, 2015 के फैसले के 23वें पैराग्राफ में अपवाद निकाला जाता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देश के प्रधान न्यायाधीश के अलावा अब यह छूट राज्यों के राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों को भी दी जाती है। प्रधानमंत्री की तस्वीरों के बदले में विभागीय (कैबिनेट) मंत्री, संबद्ध मंत्रालय के प्रभारी मंत्री की इच्छा होने पर तस्वीर प्रकाशित की जा सकती है। इसी तरह राज्यों में मुख्यमंत्री की तस्वीरों के बदले में कैबिनेट मंत्री या प्रभारी मंत्री की इच्छा होने पर तस्वीर प्रकाशित की जा सकती है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि मई, 2015 के फैसले के अन्य सभी निर्देश लागू रहेंगे। यह फैसला केंद्र और कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ समेत सात राज्यों की याचिका पर आया।

इसमें शीर्ष अदालत के 13 मई, 2015 के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी। फैसले में समीक्षा की मांग इस आधार पर की गई थी कि यह मौलिक अधिकारों और संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है। इससे पहले केंद्र की ओर से उपस्थित अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने विभिन्न आधारों पर फैसले की समीक्षा करने का जोरदार समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि अगर विज्ञापनों में प्रधानमंत्री की तस्वीर प्रकाशित करने की अनुमति दी जाती है तो वही अधिकार उनके मंत्रिमंडल के साथियों को भी दिया जाना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री बराबर लोगों में प्रथम हैं। अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा था कि मुख्यमंत्रियों और उनकी मंत्रिमंडल के साथियों की तस्वीरें भी विज्ञापनों में प्रकाशित करने की अनुमति दी जानी चाहिए।