देशभर में नोट बंदी के फैसले के बाद जहां दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के लोगों को पैसों की तंगी झेलनी पड़ रही है, ऐसे में दूर दराज के गांव का और भी बुरा हाल है। छत्तीसगढ़ में ऐसा ही एक नक्सल प्रभावित गांव है कोयलीबेड़ा, जहां शुक्रवार को पहली बार पैसा आया और दो घंटे में ही खत्म हो गया। यहां अधिकतर लोगों के घरों में खाने तक के लिए कुछ नहीं है। छत्‍तीसगढ़ में अंतागढ़ शहर से 25 किमी. दूर जंगल से घिरा इलाका है कोयलीबेड़ा। बस्तर के कांकेर जिले में स्थित यह क्षेत्र सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाका माना जाता है। कोयलीबेड़ा तहसील के अंतर्गत 17 पंचायत, 55 गांव और 20 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं। यहां ICICI की एक ब्रांच और एक एटीएम छह महीने पहले खोला गया था। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद शुक्रवार को पहली बार ब्रांच में पैसे लाए गए थे। गांव वाले जैसे ही पैसे निकालने वहां पहुंचे, पता लगा कि दो घंटे में ही यह खाली हो गया। इसके अलावा यहां एसबीआई का एक कस्टमर सर्विस प्वाइंट भी है, यहां पहुंचने पर भी कोई पैसा नहीं मिला।

पैसे मिलने की आस में लोग लगातार तीन दिन तक बैंक और एटीएम के आगे ही बैठे रहे। दूर दराज के गांव वालों को बैंक तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है, इसलिए वह बार-बार नहीं आ सकते। ऐसे में शुक्रवार बाजार से रविवार तक कई लोग इंतजार ही करते रहे। तीन दिन तक इंटरनेट कनेक्शन ना होने के कारण पैसे जमा करना भी संभव नहीं था। एक बुजुर्ग शख्स सोहन दर्रो ने बताया, “यहां हमेशा से यही स्थिति रहती है। कभी इंटरनेट आता है तो बिजली नहीं होती, जब बिजली होती है तो इंटरनेट नहीं होता।” सोहन ने बताया कि उन्हें गांव के सरपंच ने बताया था कि 1000 और 500 रुपए के नोट अब बंद हो गए हैं और इन्हें बैंक अकाउंट में डालना होगा।

इलाके में अधिकतर लोगों के बैंक अकाउंट पिछले दो साल में खुले हैं, जिनमें से अधिकतर ने जनधन योजना के तहत अकाउंट खुलवाया था। अब यहां हजारों की संख्या में बैंक अकाउंट हैं और लोग मनरेगा व दूसरी सरकारी योजनाओं से पैसे कमाते हैं। कोयलीबेड़ा के निवासी और किसान मोहन सिंह पटेल ने बताया कि लोगों को अधिकतर 500 और 1000 रुपए के नोट ही हैं। मोहन ने बताया कि यहां अधिकतर खरीदारी कैश में ही होती है, क्योंकि कार्ड कहीं नहीं चलता। सबसे करीबी जगह जहां कार्ड काम कर सकता है वह 60 किमी दूर है।

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