सरकार ने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी देकर एक करोड़ से ज्यादा कर्मचारियों और पेंशनरों को तोहफा दिया है। सिफारिशें लागू होने पर कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का वेतन हमारे सांसदों से भी ज्यादा हो जाएगा। वेतन और भत्तों में न्यूनतम 23.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी, यह पिछले 70 सालों में सबसे कम है। इससे करदाताओं पर एक लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जो कि हमारी जीडीपी का 0.7 प्रतिशत है। यह बदलाव एक जनवरी, 2016 से लागू होंगे। आयोग की ओर से बेसिक पे में हर साल 14.27 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की सिफारिश की गई है। सरकारी खजाने पर पड़ने वाले अतिरिक्त खर्च का 73,560 करोड़ आम बजट से तथा 28,450 करोड़ रुपए रेलवे से निकाला जाएगा। छठे वेतन आयोग ने 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की सिफारिश की थी, लेकिन 2008 में लागू करते वक्त दोगुनी बढ़ोत्तरी की गई थी।
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नए वेतन ढांचे के तहत, एक सरकारी कर्मचारी की अधिकतम सैलरी करीब ढाई लाख रुपए प्रतिमाह हो जाएगी। जोकि अभी के उच्चचम 90,000 रुपए प्रतिमाह के दोगुने से भी ज्यादा है। इससे सांसदों की बेचैनी बढ़ने की संभावना है जो अक्सर सरकारी अधिकारियों व खुद में असमानता की बात करते रहते हैं। इस मसले का सुलझाने के लिए सरकार सांसदों के वेतन व भत्ते बढ़ाने पर भी विचार कर रही है।
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7वें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 18,000 रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है। यह वर्तमान के 7,000 रुपए के दोगुने सभी ज्यादा है। 2016-17 के बजट में 7वें वेतन आयोग का लागू करने के लिए फंड का प्रावधान नहीं किया गया है। सरकार ने कहा है कि दशक में एक बार होने वाली वेतन वृद्धि के लिए विभिन्न मंत्रालयों में अंतरिम आवंटन किया गया है। अंतरिम आवंटन करीब 70,000 करोड़ रुपए है।