केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसने भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच नौवहन को सुगम बनाने के लिए शुरू की गई सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को राष्ट्रहित में नष्ट नहीं करेगी। केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय की ओर से प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ को सूचित किया गया कि उसने पूर्व की सेतुसमुद्रम समुद्री मार्ग परियोजना का विकल्प तलाशने का फैसला किया है। केंद्र ने अदालत में दाखिल एक हलफनामे में कहा, “भारत सरकार राष्ट्रहित में रामसेतु को बगैर क्षति पहुंचाए पूर्व की सेतुसमुद्रम समुद्री मार्ग परियोजना का विकल्प ढूंढना चाहती है।”
सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता पिंकी आनंद केंद्र की ओर उपस्थित हुई थी। उन्होंने कहा कि सेतुसमुद्रम परियोजना के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की जनहित याचिका (पीआईएल) को अब खारिज किया जा सकता है। स्वामी ने पीआईएल दाखिल करते हुए कहा था कि राम सेतु को क्षति नहीं पहुंचाना चाहिए। दूसरी तरफ, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने एक बार फिर कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर दोनों समुदाय की सहमति से बनना चाहिए।
मध्य प्रदेश के जबलपुर पहुंचे श्री श्री रविशकर ने गुरुवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण दोनों समुदायों की आपसी सहमति से होना चाहिए, इससे बहुत लोग सहमत भी हैं। चंद लोग ही ऐसे हैं जिनका अस्तित्व संघर्ष में है, वे ऐसा नहीं चाहते हैं। रविशंकर ने ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ पर तंज कसते हुए कहा, “लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, मैंने कहा है कि मेरा देश सीरिया जैसा न हो। देश में अमन-चैन और शांति रहे। इस पर लोग बड़ा बवाल करते हैं, किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और किसी को नहीं। यह गलत बात है। इसलिए सभी को सचेत होना होगा।”
उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि देश के लिए सभी एक हो जाओ और अमन चैन के लिए काम करो। अयोध्या मंदिर को लेकर मौलाना सैयद नदवी के मामले पर मचे बवाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे विशाल हृदय के व्यक्ति हैं। वे विशाल दृष्टिकोण रखते हैं। श्री श्री रविशंकर बालाघाट से हेलीकॉप्टर से जबलपुर पहुंचे थे। डुमना विमानतल पर प्रशासनिक अधिकारियों के साथ उनके अनुयायियों ने उनका स्वागत किया।

