देशभर में बाल अपराध की धाराओं के तहत दर्ज 50 हजार से अधिक मामलों में बच्चों को न्याय का इंतजार है। ये मामले एक साल के भीतर दर्ज किए गए हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने संसद में रिपोर्ट पेश कर यह जानकारी दी है। रिपोर्ट में दिसंबर 2022 तक के आंकड़े शामिल किए गए हैं। वहीं, केंद्र सरकार ऐसे मामलों को निपटाने के लिए तीन वर्ष और बढ़ाने की तैयारी कर रही है। रिपोर्ट बताती है कि केंद्र शासित प्रदेश व राज्यों के पास कुल 1,98,208 मामले लंबित पड़े थे उनमें से सरकारी एजंसियों ने इस वर्ष कुल 64,959 मामलों का निपटारा किया है। इस सूची में बाल अपराध से संबंधित राज्यों में शीर्ष पर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओड़ीशा और महाराष्ट्र शामिल हैं ।

न्याय विभाग के मुताबिक लंबित पड़े मामलों के निपटारे के लिए एक नई योजना तैयार की जा रही है जिसकी विस्तार समय सीमा वर्ष 2026 होगी। केंद्र सरकार ने बताया कि सरकार पाक्सो के तहत दर्ज हो रहे मामले को गंभीरता से ले रही है। पाक्सो के तहत बाल शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील सामग्री तैयार किए जाने के मामले में सख्त प्रावधान किए गए हैं।

केंद्र सरकार ने इस प्रकार के मामलों के निपटारे के लिए त्वरित विशेष अदालत का गठन किया है। रिपोर्ट बताती है कि देश में कुल 768 त्वरित विशेष अदालत प्रचालन में हैं और इनके तहत 418 विशिष्ट पाक्सो न्यायालय मौजूद हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2020 में कुल 158843 मामले अदालत में आए थे। इन मामलों में से 37148 मामले अभी भी लटके हुए हैं।

इसी प्रकार 2021 में कुल 184843 मामले आए थे, इनमें से 73627 मामले ही निपटाए जा चुके हैं। इन अदालतों के लिए दी जाने वाली धनराशि का खर्च भी साल दर साल बढ़ रहा है। 2019 20 में इनके लिए 140 करोड़, 2020 21 में 160 करोड़ अब और 2021 22 में 134 करोड़ और चालू वित्तीय वर्ष में 186 करोड़ रुपए की धनराशि जारी की गई हैं।