देश के 106 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के फैसले को लेकर केंद्र के दो प्रमुख विभागों ने कड़ा विरोध जताया था लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस फैसले पर विचार नहीं किया। दरअसल, नीति आयोग और वित्त मंत्रालय ने इन जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग ना बनाने की सलाह दी थी। पोत परिवहन मंत्रालय से कहा गया था कि बिना व्यापक विचार के जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का फैसला सही नहीं होगा। इसके अलावा यह भी कहा गया कि अगर ये सभी जलमार्ग राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किए जाते हैं तो केंद्र सरकार पर वित्तीय भार बढ़ेगा और इसके अलावा जलीय इकोसिस्टम पर काफी बुरा असर पड़ेगा जिसे ठीक नहीं किया जा सकेगा। द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से ये खुलासा हुआ है।फाइल नोटिंग और आधिकारिक कागजातों की गहन जांच के बाद यह जानकारी सामने आई है।
बताया यह भी गया है कि वित्त मंत्रालय की टिप्पणियों को केंद्रीय कैबिनेट के सामने विचार के लिए रखा ही नहीं गया और कैबिनेट ने बिना इसके ही राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक, 2015 के प्रस्ताव को 25 मार्च 2015 को मंजूरी दे दी थी। पोत मंत्रालय को भेजे गए नोट का जवाब देते हुए वित्त मंत्रालय का कहना था कि अगर इन सभी जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया तो इससे केंद्र सरकार पर खर्च बढ़ेगा। इसके अलावा यह भी कहा गया कि जो बड़े मार्ग हैं केवल उन्हें ही राष्ट्रीय मार्ग घोषित किया जाना चाहिए बाकि जलमार्गों को राज्य जलमार्ग घोषित करना चाहिए और इन्हें बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होनी चाहिए।
मंत्रालय की तरफ से दलील दी गई थी कि ‘राष्ट्रीय जलमार्ग के निर्माण के लिए, चैनल मार्किंग जीपीएस, रिवर मैप्स और चार्ट्स, उपलब्ध जहाजों और टर्मिनल निर्माण जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण से सरकार पर पैसों का काफी बोझ आएगा। वित्त मंत्रालय के अलावा नीति आयोग ने भी इस प्रस्ताव को लेकर रजामंदी जाहिर नहीं की थी। इसके अलावा जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा मंत्रालय को भी इस प्रस्ताव को लेकर आपत्ती थी।नीति आयोग का कहना था कि राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिए जो मांपदड जिन्हें अपनाया जाना चाहिए।