लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने से चूकने के बाद भाजपा को अब उपचुनाव में भी बड़ा झटका लगा है। सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में एक बार फिर इंडिया गठबंधन का डंका बजा है, विपक्षी एकता की नींव ने बीजेपी के सभी समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया। इसी वजह से चुनाव में एक तरफ अगर बीजेपी सिर्फ दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाई तो वहीं दूसरी तरफ दो राज्यों की 5 सीटों में से चार पर कांग्रे,स बंगाल की चारों सीटों पर टीएमसी और पंजाब की एक सीट पर आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की।

क्या नतीजे रहे?

बीजेपी की बात करें तो उसे सिर्फ दो ही सीटों पर जीत मिली है। एक तरफ हिमाचल प्रदेश की हमीरपुर सीट से जीत का स्वाद मिला है तो वही कमलनाथ के गढ़ अमरवाड़ा में भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया। अगर मोटा मोटा समझा जाए तो सात राज्यों की 13 सीटों में इंडिया गठबंधन एनडीए पर पूरी तरह भारी पड़ा है और उसने 10 सीटें हासिल की हैं। बिहार की रुपौली इकलौती ऐसी सीट रही जहां पर दोनों इंडिया और बीजेपी को झटका लगा और निर्दलीय उम्मीदवार ने वहां से जीत हासिल की।

बंगाल में बीजेपी पस्त

अब यह चुनावी नतीजे बीजेपी के लिए किसी बुरे सपने जैसे हैं। बड़ी बात यह है जी पश्चिम बंगाल में पार्टी पिछले कई सालों से विस्तार की कोशिश कर रही है और खुद को एक प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उसने स्थापित किया है। वहां पर इस बार अपनी ही जीती हुई तीनों सीटों पर पार्टी की हार हुई है और ममता दीदी का मैजिक सिर चढ़कर बोला है।

उपचुनाव के नतीजे से वैसे तो कई संदेश निकल रहे हैं, लेकिन एक संदेश ऐसा भी है जो पिछले कई चुनाव में पहले भी देखने को मिला है लेकिन किसी भी पार्टी ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया। एक बार फिर जनता ने दलबदलू नेताओं को सिरे से खारिज कर दिया है।

दलबदलू पड़ गए भारी

बड़ी बात यह है कि जो पांच दलबदलू नेता इस बार उपचुनाव में हारे हैं, उसमें से चार तो बीजेपी की तरफ से थे। इस कड़ी में सबसे पहले नाम आता है होशियार सिंह का जिन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में देहरा सीट पर बतौर निर्दलीय जीत दर्ज की थी। लेकिन 2024 के मार्च में सबसे बड़ा सियासी खेल हुआ और होशियार सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया। इस बार बीजेपी को बड़ी उम्मीद थी कि उपचुनाव में होशियार सिंह जीत दर्ज कर लेंगे, लेकिन उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा। माना जा रहा है बीजेपी में बड़े पद की वजह से उन्होंने पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन अब तो उनकी विधायकी भी हाथ से छिन चुकी है।

उत्तराखंड में बीजेपी के साथ खेल

बड़ी बात यह है कि देहरा सीट पर अगर होशियार सिंह की हार हुई है तो वही मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की पत्नी कमलेश ठाकुर ने एक आसान जीत दर्ज की। देहरा की तरह हिमाचल प्रदेश की नालागढ़ सीट पर भी बीजेपी को दलबदलू प्रत्याशी उतारने का नुकसान भुगतना पड़ा। असल में बीजेपी की तरफ से उन केएल ठाकुर को मैदान में उतारा गया था जो 2022 में निर्दलीय चुनाव जीत गए थे। लेकिन मार्च में उन्होंने भी बीजेपी का दामन थाम लिया, पार्टी ने भी तुरंत उपचुनाव में उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया। लेकिन नालागढ़ सीट पर कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बड़ी जीत दर्ज की और भाजपा प्रत्याशी को 9000 से भी ज्यादा मतों से हरा दिया।

बीजेपी को राजेंद्र भंडारी के रूप में एक और बड़ा झटका इस उपचुनाव में लगा है। उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट से इस बार बीजेपी ने उन राजेंद्र भंडारी पर भरोसा जताया था जो एक समय कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे। लेकिन दल बदलना राजेंद्र भंडारी को तो भारी पड़ा ही, बीजेपी को भी हार का स्वाद रखना पड़ा। इस सीट से कांग्रेस के लखपत बुटोला ने 5000 से ज्यादा वोटो से जीत हासिल की।

पंजाब में बीजेपी को झटका

वैसे बीजेपी को झटका तो पंजाब में भी दल बदल नेता की वजह से लगा है। शीतल अंगुरल ने 2022 में जालंधर पश्चिम सीट से जीत दर्ज की थी, बड़ी बात यह है उस समय वे आम आदमी पार्टी की तरफ से बैटिंग करते थे। लेकिन शीतल ने बड़ा फैसला लेते हुए लोकसभा चुनाव से पहले दल बदला और वे भाजपा में शामिल हो गए। पहले जानकार कह रहे थे कि इतने बड़े नेता का बीजेपी में जाना पंजाब के अंदर पार्टी के पक्ष में कुछ माहौल बना सकता है, लेकिन उपचुनाव चुनाव के नतीजे बताते हैं यह दावा पूरी तरह उल्टा साबित हुआ है। आम आदमी पार्टी के महेंद्र पाल भगत ने इस सीट से उपचुनाव में जीत हासिल की।

अब बीजेपी को तो दल बदलू नेताओं की वजह से झटका लगा ही है, बिहार में बीमा भारती को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। बीमा भारती पांच बार की विधायक रही हैं और उन्होंने जदयू की तरफ से एक लंबी पारी खेली। लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने राजद का दामन थामा और तब से ही उनके सियासी करियर में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। पहले लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और अब इस बार के उपचुनाव में भी वे जीत दर्ज नहीं कर सकीं।

स्थानीय मुद्दे ही रहे हावी

वैसे अगर दलबदलू नेताओं ने सभी पार्टी को बड़ा संदेश देने का काम किया है, अगर ध्यान से देखा जाए तो स्थानीय मुद्दों ने भी एक निर्णायक भूमिका इस उपचुनाव में निभाई है। कई ऐसी सीट रही हैं जहां पर चेहरों से भी ज्यादा बड़े वो मुद्दे बन गए जिनके आधार पर जनता ने वोट किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिला है जहां पर भाजपा ने कांग्रेस के हाथों दो सीटें गंवा दी। जानकार मानते हैं कि बद्रीनाथ में बीजेपी के हारने के कई कारण हैं। ऑल वेदर रोड जैसी विकास परियोजना की चर्चा तो पार्टी ने कई मौकों पर की, लेकिन ऐसा लग रहा है कि जमीन पर जनता ने इस योजना के खिलाफ अपना वोट डाला है। इसी तरह से कई विकास प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह से देवभूमि में पेड़ों को काटा गया और उसका विरोध भी देखने को मिला, उसका झटका भी बीजेपी को ही लगा है।

विपक्ष के अच्छे दिन

वैसे इंडिया गठबंधन के लिए भी इस उप चुनाव में कई बड़े संदेश छिपे हैं। लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की वजह से ही बीजेपी इस बार बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी, उसे 240 सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी तरह अब उपचुनाव के नतीजे भी बता रहे हैं कि विपक्षी एकता की वजह से ही कई सीटों पर भाजपा के साथ खेल हुआ है। ऐसे में आने वाले कई चुनाव में अगर विपक्षी एकता इसी तरह कायम रहती है तो बीजेपी की राह और ज्यादा कठिन हो जाएगी और आने वाले दिनों में सही महीना में विपक्ष के अच्छे दिन आ जाएंगे।