आर्थिक क्षेत्र में नवप्रवर्तन करने, व्यवसाय और उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं तथा जोखिमों का सामना करने की योग्यता और प्रवृत्ति उद्यमिता है। जो व्यक्ति जोखिम वहन करते हैं उन्हें साहसी या उद्यमी कहते हैं। देश की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन उद्योग, व्यापार, वाणिज्य जैसी आर्थिक गतिविधियों में उनकी सहभागिता बहुत कम है। इसका प्रमुख कारण महिला उद्यमिता का अभाव है। भारत के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अनुसार देश के सभी उद्यमों में महिला उद्यमियों की हिस्सेदारी केवल चौदह फीसद है। ‘बेन एंड कंपनी’ की एक रपट के अनुसार भारत में लगभग बीस फीसद उद्यमों का स्वामित्व महिलाओं के पास है। कई महिलाएं अपने उत्कृष्ट उद्यमिता कौशल से इस क्षेत्र में तेजी से आगे भी बढ़ रही हैं। ई-कामर्स, विज्ञान, विज्ञापन, मीडिया, मनोरंजन आदि कुछ क्षेत्र हैं, जहां भारतीय महिला उद्यमी तेजी से सफलता हासिल कर रही हैं।
हर पांच स्टार्टअप में से एक से भी कम में महिला की भागीदारी है
वर्ष 2017 में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप दस फीसद थे, जो वर्ष 2022 में बढ़ कर अठारह फीसद हो गए। यानी हर पांच स्टार्टअप में से एक से भी कम में महिला की भागीदारी है। यह स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। विगत कुछ वर्षों में स्टार्टअप उपक्रमों के विकास और विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास हुए हैं। इनमें महिलाओं की सहभागिता पर भी ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया गया है। वर्तमान में देश में ऐसे आठ हजार से अधिक स्टार्टअप उपक्रम हैं, जिनकी संस्थापक महिलाएं हैं। अब तक इन स्टार्टअप की कुल राशि लगभग 23 अरब डालर यानी करीब 1.90 लाख करोड़ रुपए है। इस दशक के आखिर तक महिला उद्यमियों की स्थिति में और सुधार आने की संभावना है। ‘बेन एंड कंपनी’ और गूगल की वर्ष 2019 की रपट के अनुसार वर्ष 2030 तक महिला उद्यमियों की हिस्सेदारी करीब एक तिहाई तक पहुंच सकती है।
भारत में कुल उद्योगों में महज 20% का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं
एक दशक पहले हुई आधिकारिक आर्थिक जनगणना से पता चला था कि भारत में कुल उद्योगों में महज 14 फीसद का नेतृत्व महिलाएं कर रही थीं। अब यह हिस्सेदारी बढ़ कर 20 फीसद हो गई है। महिलाओं द्वारा संचालित उपक्रमों में लगभग 65 फीसद ग्रामीण क्षेत्र में हैं। दक्षिण के राज्यों की महिलाओं की हिस्सेदारी उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में अधिक है। इन उपक्रमों में पिछली आर्थिक जनगणना के अनुसार लगभग 80 फीसद महिलाओं के उद्यम स्वयं वित्त पोषित हैं।
पिछले कुछ वर्षों में सरकारी योजनाओं ने लघु महिला उद्यमियों को सबसिडी वाली और सुलभ पूंजी प्रदान करके, उन्हें संभावित खरीदारों से जोड़ कर, कौशल और बाजार विकास सहायता, क्षमता निर्माण, वित्तीय साक्षरता और आसान सूक्ष्म वित्त तक पहुंच प्रदान करके महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता की है। मसलन, मिशन शक्ति जो 2021-22 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया ऐसा एकीकृत महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से महिला उद्यमियों को विभिन्न रूपों में सहायता की जाती है।
‘उद्योगिनी’ योजना में गरीब महिलाओं को मिलती है आर्थिक मदद
इसी प्रकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की समर्थ योजना भी महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करा कर आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करती है। ‘अन्नपूर्णा’ योजना योजना के अंतर्गत खाद्य और खानपान के व्यवसाय में महिला उद्यमियों को पचास हजार रुपए ऋण दिया जाता है। महिला विकास निगम द्वारा शुरू की गई ‘उद्योगिनी’ योजना भी गरीब महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करके महिला उद्यमिता को बढ़ावा देती है। यह योजना मुख्य रूप से देश के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में रहने वाली अशिक्षित महिलाओं को सहायता प्रदान करती है।
हालांकि इन सभी योजनाओं से आर्थिक गतिविधियों के संचालन में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है, लेकिन उनको अभी भी बहुत-सी व्यक्तिगत और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहली चुनौती तो देश में प्रचलित सामाजिक मानदंड और रूढ़ियां हैं। माना जाता है कि महिलाओं की भूमिका घरेलू कर्तव्यों तक सीमित होनी चाहिए, इस कारण महिलाएं स्वयं भी अपनी भूमिका घर परिवार तक सीमित कर लेती हैं।
इसके अलावा भारत में महिला उद्यमियों को अक्सर पूंजी जुटाने की समस्या आती है। उन्हें पूंजी की व्यवस्था करने और ऋण प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जबकि व्यवहार में देखा गया है कि महिलाएं अधिक ईमानदार ऋणी होती हैं। महिला उद्यमियों को अक्सर अपने उपक्रम के लिए सहायक पारिस्थितिकी तंत्र की कमी का भी सामना करना पड़ता है। उसको पर्याप्त सलाह और प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। इस कारण वे खुद में कौशल, ज्ञान और आत्मविश्वास की कमी महसूस करती हैं।
महिला उद्यमियों को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ संतुलन बिठाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। महिलाओं से अभी भी अपने घरेलू कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की अपेक्षा की जाती है, जिससे उनके व्यवसाय के लिए पर्याप्त समय और ऊर्जा देना मुश्किल हो जाता है। महिला उद्यमियों की नेटवर्क, संसाधनों और अनुभव की कमी के कारण अक्सर बाजारों तक पहुंच सीमित होती है। इससे उनके लिए ग्राहक ढूंढ़ना, उनके साथ लेन-देन करना और अपना व्यवसाय बढ़ाना मुश्किल हो जाता है। भारत में महिला उद्यमियों के पास अक्सर ऐसे आदर्श व्यक्तित्व का भी अभाव रहता है, जो उन्हें उनकी उद्यमशीलता की यात्रा में मार्गदर्शन दे सकें। शीर्ष पर महिला उद्यमियों की कमी के कारण महिलाओं के लिए खुद को उद्यमी के रूप में देखना मुश्किल होता है। महिला उद्यमियों के पास अक्सर प्रौद्योगिकी तक पहुंच भी सीमित होती है, जिससे नवाचार और बाजार में प्रतिस्पर्धा करने की उनकी क्षमता में बाधा आ जाती है। इससे महिलाओं के लिए नई तकनीकों को अपनाना और प्रतिस्पर्धी बने रहना मुश्किल हो सकता है।
महिला उद्यमियों में अक्सर अपनी क्षमताओं को लेकर आत्मविश्वास की कमी नजर आती है, जो उन्हें अपने उद्यमशीलता के सपनों को पूरा करने से रोक सकती है। महिला उद्यमियों के पास विशेषकर तकनीकी क्षेत्रों के व्यवसाय में सफल होने के लिए अक्सर आवश्यक शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव होता है। इससे महिलाओं के लिए अपना व्यवसाय शुरू करने और बढ़ाने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करना मुश्किल हो सकता है।
निस्संदेह महिला उद्यमिता न केवल किसी देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है, बल्कि अत्यधिक व्यापक लैंगिक असमानताओं के कारण मौजूद बंधनों को तोड़ने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में भी काम कर सकती है। इसके लिए सबसे पहले तो महिलाएं स्वयं अपने में नवाचार और जोखिम उठाने की क्षमता का विकास करें। इसके लिए परिवार के पुरुष सदस्य उनको प्रोत्साहित और पर्याप्त सहयोग करें। सरकार, समाज और स्थानीय समुदाय उद्यमशील अप्रशिक्षित महिला प्रतिभाओं की पहचान करके और उनको आवश्यक शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान करने और उद्योग-व्यवसाय शुरू करने में सहयोग करें, साथ ही महिला उद्यमियों द्वारा निर्मित उत्पादों के विपणन हेतु समुचित व्यवस्था करें तो देश की शहरी ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों की महिला उद्यमी भी सफलता के नए आयाम स्थापित और देश की अर्थव्यवस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी का निर्वाह कर सकती हैं।