मुंबई: ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा और शिवसेना ने अपने मतभेद दूर कर लिए हैं । और ऐसा इस वजह से लगा कि शिवसेना ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्तावित विस्तार के लिए अपने राज्यसभा सदस्य अनिल देसाई का नाम सुझाने का फैसला किया है ।

पिछले कुछ दिनों तक गिले-शिकवे का सिलसिला चलाने के बाद अब शिवसेना महाराष्ट्र में सत्ता के बंटवारे पर भी सहमति जताती प्रतीत हो रही है।

एक शिवसेना सांसद ने नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने की शर्त पर पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘आरंभ में उद्धवजी (शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे) ने फैसला किया था कि जब तक राज्य स्तर पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचें, हम मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए किसी नाम की सिफारिश नहीं करेंगे।’’

शिवसेना सांसद ने कहा, ‘‘लेकिन, अब चूंकि वार्ता निर्णायक मोड़ पर है, हमने अपना रूख बदल दिया हैं हमारे नेता ने अनिल देसाई के नाम की सिफारिश करने का फैसला किया है ताकि उन्हें कल केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सके।’’

उन्होंने कहा कि पार्टी नेतृत्व केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के लिए दूसरे नाम का फैसला शाम तक करेगा।
प्रधानमंत्री कार्यालय :पीएमओ: ने गुरूवार को शिवसेना से कहा था कि वह केन्द्र सरकार में शामिल करने के लिए दो नामों की सिफारिश करे।

पीएमओ के संदेश पर तब शिवसेना ने कहा था कि वह अगले दिन ये नाम भेज देगी। लेकिन, महाराष्ट्र में सत्ता के बंटवारे पर दोनों पार्टियों के बीच के मुद्दे इस बारे में हुई वार्ताओं में हल नहीं होने पर ऐसा प्रतीत हुआ कि उद्धव केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के लिए किसी नाम का प्रस्ताव नहीं करने का फैसला करेंगे ।

शिवसेना सांसद ने कहा कि अब उनकी पार्टी और भाजपा के बीच की वार्ता ‘‘अंतिम चरण’’ में पहुंच गई है और पार्टी प्रमुख 12 नवंबर को प्रस्तावित विश्वास मत में भाजपा सरकार का समर्थन करने के बारे में फैसला कल करेंगे।

उद्धव ने घटनाक्रम पर चर्चा करने के लिए नवनिर्वाचित शिवसेना विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की कल एक बैठक बुलाई है।
शिवसेना सांसद ने बताया, ‘‘मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने उद्धवजी से मुलाकात की और कहा कि वे चाहते हैं कि हम नई सरकार का हिस्सा बनें और उन्हें राकांपा से समर्थन लेने में रूचि नहीं है। हमें 12 मंत्रिमंडलीय पदों की पेशकश की गई हैं जिनमें से पांच कैबिनेट रैंक और सात राज्यमंत्री रैंक के हैं।’’

बहरहाल, अभी यह साफ नहीं हो सका है कि क्या शिवसेना ने उप मुख्यमंत्री के पद की अपनी मांग छोड़ दी है या बरकरार रखी है।
इससे पहले, भाजपा ने 1995 का फार्मूला खारिज कर दिया था जब उसे कनिष्ठ साझेदार होने पर उप मुख्यमंत्री का पद मिला था।