इनसानों की तरह अब देश में वन्य जीवों को बचाने के लिए देश में खास बायोबैंक तैयार किए जाएंगे। ये अपनी तरह का एक अनोखे बैंक होंगे और यहां पर जानवरों के उन अंगों व चीजों को संजोकर रखा जा सकेगा, जो कि हिंसक घटनाओं या अन्य दुर्घटनाओं में होने वाले जानवरों के लिए प्रयोग किए जा सकें। केंद्रीय वन एंव पर्यावरण मंत्रालय ने यह पहल की है। इसका सबसे अधिक लाभ देशभर के चिड़ियाघरों और वन क्षेत्रों को मिलेगा। आपात स्थिति में इन अंगों प्रयोग जानवरों के लिए किया जा सकेगा।

पायलट योजना के लिए मंत्रालय ने देश के पांच प्रमुख चिडियाघरों को शामिल किया है। इनमें दार्जीलिंग पश्चिम बंगाल, हैदराबाद तेलंगाना, बंगलुरु कर्नाटक, जूनागढ़ गुजरात और अगरतला त्रिपुरा के चिड़ियाघरों को शामिल किया है। इन सभी केंद्रों के सीधेतौर पर हैदराबाद के केंद्र से जोड़ा गया है ताकि संबंधित मामलों के विशेषज्ञों की रायशुमारी लाभ देश के अन्य चिड़ियाघरों को भी मिल सके। योजना के पहले चरण में जिन अंगों को संरक्षित करने पर सहमति बनी है, उनमें संबंधित चौदह श्रेणियां है। इन श्रेणियों के तहत जिंदा और मृतक दोनों तरह के जानवरों के अंग सुरक्षित करने की तैयारी है।

मंत्रालय के मुताबिक जिस प्रकार से इनसान के अंगों को संरक्षित करके उनका पुन : प्रयोग किया जा सकता है, उसी प्रकार जानवरों में भी इस तकनीक का प्रयोग संभव है। संरक्षित करने की श्रेणी में जिंदा जानवरों का रक्त, स्कीन समेत अन्य अंग और मृतकों ह्रदय, किडनी, फेफड़े, आंखें और अंडों के बाहरी कवच आदि शामिल हैं। इनकी मदद से प्रजातियों के प्रजनन का भी रास्ता खुलेगा। इन अंगों को संरक्षित करने के लिए सभी राज्यों को केंद्र सरकार की मदद से वित्तीय मदद भी केंद्र सरकार मुहैया कराएगी। पायलट प्रोजेक्ट के लिए मंत्रालय की तरफ से धनराशि का भी प्रावधान कर दिया गया है। मंत्रालय के मुताबिक जल्द ही इस परियोजना को लागू करने के लिए पांच चिड़ियाघरों में जमीनी स्तर पर कार्य शुरू किया जाएगा।