इस बात पर ध्यान देते हुए कि दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में लगभग सात घंटे की देरी की और शिकायतकर्ता, पीड़ित और गवाह सभी पुलिसकर्मी हैं तो इस बात की कोई संभावना नहीं है कि आरोपी किसी पुलिस अधिकारी को प्रभावित कर सकता है। दिल्ली की एक अदालत ने सिंघू बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन स्थल से दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए स्वतंत्र पत्रकार मंदीप पुनिया की जमानत याचिका मंगलवार को स्वीकार कर ली।
रोहिणी कोर्ट ने उन्हें 25 हजार रुपये के निजी मुचलके पर यह जमानत दी है। 25 साल के पुनिया पर कथित तौर पर पुलिस को अपनी ड्यूटी करने से रोकने और साइट पर सरकारी कर्मचारी को चोट पहुंचाने का आरोप था। अदालत ने मंदीप को जमानत देते हुए कहा कि ज़मानत एक नियम है जबकि जेल एक अपवाद है। अदालत ने पुनिया को उसकी पूर्व अनुमति के बिना देश से बाहर नहीं जाने का निर्देश दिया। उसने कहा, ‘आरोपी जमानत पर रिहाई के दौरान इस प्रकार का कोई अपराध या कोई अन्य अपराध नहीं करेगा। आरोपी किसी भी तरह सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा।’
मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट सतबीर सिंह लाम्बा ने कहा ” यहां यह उल्लेख करना उचित है कि वर्तमान मामले में कथित हाथापाई की घटना शाम लगभग 6.30 बजे की है। हालांकि, अगले दिन सुबह लगभग 1.21 बजे एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा, शिकायतकर्ता, पीड़ित और गवाह केवल पुलिस कर्मी हैं। इसलिए, ऐसी कोई संभावना नहीं है कि आरोपी/आवेदक किसी भी पुलिस अधिकारी को प्रभावित कर सकता है। ”
दिल्ली पुलिस ने पुनिया की जमानत का विरोध करते हुए कहा था कि वह प्रदर्शनकारियों को उकसा सकता है और विभिन्न लोगों के समूह के साथ विरोध स्थल पर उपद्रव मचा सकता है और जांच में बाधा उत्पन्न कर सकता है। वहीं जमानत याचिका का विरोध करते हुए, सरकारी वकील ने कहा कि पुनिया “प्रदर्शनकारियों को उकसाने के लिए फिर से भड़का सकता है, और विभिन्न लोगों के समूह के साथ विरोध स्थल पर उपद्रव पैदा कर सकता है, और जांच में बाधा उत्पन्न कर सकता है।”
दूसरी ओर, पुनिया के वकीलों ने तर्क दिया था कि वह “केवल अपने पत्रकार कर्तव्यों को पूरा कर रहे थे और एक अन्य पत्रकार को उनके साथ हिरासत में लिया गया था, लेकिन उन्हें आधी रात (शनिवार को) के आसपास छोड़ा गया था।” पुनिया पर आईपीसी की धारा 186 (सरकारी कर्मचारी के काम में जानबूझकर बाधा उत्पन्न करना), 353 (ड्यूटी कर रहे सरकारी कर्मचारी को पीटना या उसके खिलाफ बल प्रयोग) और 332 (ड्यूटी कर रहे सरकारी कर्मचारी को जानबूझकर चोट पहुंचाना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।