राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तीन हफ्ते बाद उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना सैयद अरशद रशीदी ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने अदालत से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने की याचिका दाखिल की। रशीदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘हिंदू पक्षों’ द्वारा किए गए अपराध के लिए ‘इनाम देने’ जैसा है। रशीदी ने अपनी याचिका में कहा है कि ‘पूरा न्याय तभी हो सकता है, जब सुप्रीम कोर्ट केंद्र और यूपी सरकार को बाबरी मस्जिद दोबारा बनवाने का निर्देश दे।’

बता दें कि 9 नवंबर को 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने एकराय ने फैसला दिया था कि पूरी विवादास्पद जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दी जानी चाहिए। मंदिर का निर्माण एक ट्रस्ट के जरिए हो और मुस्लिमों को इसके नजदीक या अयोध्या में किसी अन्य महत्वपूर्ण जगह पर मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन दी जाए।

एडवोकेट एजाज मकबूल के जरिए दाखिल की गई इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोर्ट का यह फैसला ”दरअसल अदालत की ओर से दिया गया वो परम आदेश साबित हुआ जिसमें बाबरी मस्जिद को तोड़ने और राम मंदिर को उस जगह पर बनाने की इजाजत दी गई।” इस आरोप में पक्ष में दलील दी गई कि ”क्योंकि अगर बाबरी मस्जिद को अगर गैरकानूनी ढंग से 6 दिसंबर 1992 को नहीं गिराया जाता तो वर्तमान आदेश को लागू करने के लिए उपस्थित मस्जिद को तोड़ने की जरूरत पड़ती ताकि प्रस्तावित मंदिर के लिए जगह खाली की जा सके।” याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पक्षों ने पांच एकड़ जमीन के लिए कोई दरख्वास्त या मिन्नत नहीं की थी।

उधर, मौलाना सैयद अरशद मदनी ने यह दावा किया कि अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘बहुसंख्यकवाद और भीड़तंत्र’ को न्यायसंगत ठहराता है। साथ ही कहा कि इस मामले में संविधान में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष अदालत में पुर्निवचार याचिका दायर की गई है न कि इसका मकसद देश के ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ में बाधा डालना है। मदनी ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय अयोध्या मामले पर दिए गए अपने फैसले को बरकरार रखता है तो मुस्लिम संगठन उसे मानेगा।