Atishi Kejriwal News: दिल्ली की राजनीति में मुख्यमंत्री आतिशी और एलजी वीके सक्सेना के बीच में तकरार देखने को मिली है। असल में एलजी की तरफ से एक चिट्ठी लिखी गई जिसमें जोर देकर बोला गया कि मुख्यमंत्री आतिशी का अरविंद केजरीवाल द्वारा अपमान किया गया है। इस बात पर ज्यादा जोर रहा कि केजरीवाल की तरफ से एक टीवी इंटरव्यू में आतिशी को अस्थाई मुख्यमंत्री बता दिया गया था।

अब आतिशी ने उस चिट्ठी पर जवाब तो दिया लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सही में आतिशी कभी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी जा सकती हैं? क्या आतिशी कभी बगावती तेवर अपना सकती हैं, यह सवाल पूछने का कारण यह है क्योंकि एलजी की चिट्ठी साफ दिखाती है अगर आतिशी और केजरीवाल के बीच में विश्वास की थोड़ी भी कमी रही तो यह एक चिट्ठी कब एक नफरत की दीवार खड़ी कर देगी, किसी को पता नहीं चलेगा।

वैसे अगर सवाल यह उठा रहा है तो इसका कोई एक स्पष्ट जवाब देखने को नहीं मिल सकता। कारण सबसे बड़ा यह है कि आतिशी ने पिछले कुछ सालों से अरविंद केजरीवाल के साथ काफी मधुर रिश्ते रखे हैं। इस वजह से केजरीवाल के जेल जाने के बाद आतिशी के पास सबसे ज्यादा जिम्मेदारी आई थीं, तमाम मंत्रालय संभालने से लेकर हर मुद्दे पर पार्टी का स्टैंड स्पष्ट करने तक, आतिशी काफी सक्रिय दिखाई पड़ीं। लेकिन सवाल अगर यह उठे कि क्या आतिशी कभी बगावत कर सकती हैं तो इसे नकारा नहीं जा सकता। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि 2015 में भी अपने गुरु माने जाने दो नेताओं के साथ आतिशी ऐसा ही कर चुकी हैं। कारण जो भी हो लेकिन एक तथ्य रहा कि आतिशी ने अपने सबसे करीबी दो नेताओं को काफी कुछ सुना दिया था।

यहां बात हो रही है प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की, असल में ऐसा कहा जाता है कि आम आदमी पार्टी में आतिशी को लाने का काम योगेंद्र यादव ने किया था। इसी वजह से दोनों सियासी रूप से काफी करीब थे और एक दूसरे के विचारों से प्रेरित भी माने जाते थे। लेकिन योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण की समय-समय पर अरविंद केजरीवाल के साथ तकरार रही, कई मुद्दों पर जब असहमति बनने लगी तो फैसला लिया गया कि अलग राहें करनी जरूरी है। इसी वजह से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने आम आदमी पार्टी छोड़ दी, लेकिन उनका आप छोड़ना आतिशी को भी खासा नुकसान दे गया, ऐसा इसलिए क्योंकि उस एक लड़ाई की वजह से आतिशी ने प्रवक्ता का पद गंवा दिया था।

अब उस पद को गंवाने का मतलब यह था कि आतिशी को वफादारी साबित करनी थी। अब उनके पास दो ही विकल्प बचे थेृ- अगर वे चाहती तो अपने सियासी गुरु योगेंद्र यादव के साथ जा सकती थीं, जो शख्स उन्हें आम आदमी पार्टी में लेकर आया था, वे आसानी से उनका समर्थन करती और अरविंद केजरीवाल का साथ छोड़ देती। लेकिन उस समय 32 साल की रही आतिशी ने ऐसा सियासी दिमाग चलाया कि उन्होंने दोनों योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को दगा देने का फैसला किया और अरविंद केजरीवाल का दिल खोलकर समर्थन कर दिया। उनकी एक चिट्ठी आज भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल रहती है, उस चिट्ठी में उन्होंने दो तूक कहा था कि वे अरविंद केजरीवाल के सिद्धांतों को ज्यादा पसंद करती हैं।

अपने उस समय के लेटर में आतिशी ने लिखा था कि प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव पार्टी के संस्थागत ढांचे को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। ज्यादा दुख इस बात का होता है कि जो भी कदम यह दोनों नेता उठाएंगे, वो भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी लड़ाई को कमजोर करेंगे। जब भी सार्वजनिक रूप से इस तरह के मुद्दे को उठाते रहेंगे, पार्टी के लिए जवाब देना और ज्यादा मुश्किल होगा।

अब एक वो दिन था और एक आज का दिन है, आतिशी ने उसके बाद कभी भी अरविंद केजरीवाल का साथ नहीं छोड़ा। जैसे ही केजरीवाल को आबकारी घोटाले में जेल जाना पड़ा, आतिशी ने खूब मेहनत की, पार्टी का स्टैंड बखूबी रखा। लेकिन 2015 का वो किस्सा यह जरूर बताता है कि समय आने पर और जरूरत के हिसाब से आतिशी कई बार ऐसे फैसले ले लेती हैं जहां पर उनके अपने भी उनके लिए ज्यादा मायने नहीं रखते। इसी वजह से कहा जा रहा है कि अगर अरविंद केजरीवाल के साथ उनकी थोड़ी भी तकरार होती है और अगर इतिहास खुद को दोहराता है, उस स्थिति में जरूर ऐसा हो सकता है कि अरविंद केजरीवाल को आतिशी से बगावत मिल जाए। वैसे अगर आतिशी का एलजी को दिया लेटर पढ़ना है तो यहां क्लिक करें