असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कुछ मदरसों के शुक्रवार के दिन बंद रहने पर आपत्ति जताई। उन्होंने सोमवार को कहा कि यदि ऐसा जारी रहा तो सरकार कड़े कदम उठाएगी और हैडमास्टर को सस्पेंड भी कर सकती है। सरमा ने कहा, ”सरकार को हाल ही में पता चला है कि राज्य में कुछ मदरसे शुक्रवार के दिन बंद रहते हैं। यह कानून के खिलाफ हैं। यदि उन्होंने ऐसा करना बंद नहीं किया तो सरकार इस तरह के संस्थानों के हैडमास्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकेगी नहीं।” मंत्री ने कहा कि सरकार को रिपोर्ट मिली है कि कुछ जिलों में कुछ मदरसे शुक्रवार को बंद रहते हैं। उन्होंने कहा, ”मदरसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में शुक्रवार को बंद रहते हैं भारत में नहीं। हमारे देश में रविवार के दिन सभी धर्मों के लोग साप्ताहिक छुट्टी पर रहते हैं। मदरसों को भी रविवार के दिन ही बंद रहना चाहिए।”
सरमा ने कहा कि शुक्रवार दोपहर को बच्चों के नमाज में शामिल होने से सरकार को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मदरसे शुक्रवार को बंद नहीं रहने चाहिए। सरमा के पास शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय भी है। पिछले दिनों उन्होंने बांग्लादेशी लोगों का मुद्दा उठाते हुए राज्य की जनता से अपने दुश्मन को चुनने को कहा। उन्होंने कहा कि वे 1-1.5 लाख लोग या 55 लाख लोगों में से चुन लें कि उनका दुश्मन कौन है? असम में नागरिकता (संसोधन) बिल पर विपक्ष के सवालों का जवाब देने के दौरान उन्होंने यह बयान दिया था। हालांकि असम में कितने बांग्लादेशी लोग हैं इसका आधिकारिक आंकड़ा नहीं हैं लेकिन राजनैतिक दलों का कहना है कि राज्य में 55 लाख बांग्लादेशी माइग्रेंट हैं।
हिमंत बिस्व सरमा ने कहा था, ”हमें तय करना है कि हमारा दुश्मन कौन है। कौन हमारा दुश्मन है डेढ़ लाख लोग या 55 लाख लोग। असमिया समुदाय चौराहे पर खड़ा है। हम 11 जिले नहीं बचा सके। यदि हम ऐसे ही रहे तो 2021 की जनगणना में छह जिले और चले जाएंगे। 2031 में बाकी के जिले भी चले जाएंगे।” सरमा ने 2011 की जनगणना के आधार पर 11 जिलों को मुस्लिम बहुलता वाला बताया। 2001 में यह संख्या छह थी।
उन्होंने बिल का विरोध करने वालों से पूछा था कि किस समुदाय ने असमिया लोगों को अल्पसंख्यक बनाने की धमकी दी है। नागरिकता (संसोधन) बिल के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश में जुल्म सह रहे हिंदुओं, बौद्धों, जैन, सिख और पारसियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है।