1970 के दशक के मध्य की बात है। तब गोलप बरूआ (अब अनूप चेतिया) तिनसुकिया कॉलेज में पढ़ता था। हमेशा मीठी बातें करने वाला गोपाल पढ़ाई से ज्यादा खेल में दिलचस्पी लेता था। असल में वह डिब्रूगढ़ जिले के जिस गांव (जेराई चकालीभोरिया) का था, वह फुटबॉल की नर्सरी हुआ करता था। उस गांव के हर घर का एक लड़का असम के लिए खेलता था।
1978 की शुरुआत में गोलप बरूआ मणिपुर गया। रूरल स्पोर्ट्स टीम के अधिकारी के तौर पर। वहां उसे कुछ ऐसा दिखा जो फुटबॉल से भी ज्यादा आकर्षक लगा। वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के कुछ सदस्यों से मिला। उनसे बातचीत में उसके सामने हथियारबंद संगठन बनाने और राज्य की संप्रभूता के लिए लड़ने का विचार रखा गया। विचार उसे पसंद आ गया। कुछ ही महीने बाद उसने यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) की स्थापना कर ली। उसने अपने गांव के बचपन के दोस्त परेश बरूआ और कुछ अन्य लोगों को साथ लेकर यह संगठन बनाया था।
चार-पांच साल में उल्फा के साथ बड़ी संख्या में युवा जुड़ गए। पेरश बरूआ संगठन की हथियारबंद इकाई का प्रमुख था और गोलप बरूआ (जो तब तक अनूप चेतिया बन गया था) राजनीतिक इकाई संभाला करता था। 1988 से 1991 तक उल्फा के केंद्रीय प्रचार सचिव रहे सुनील नाथ ने सरेंडर करने के वक्त कहा था, ‘परेश बरूआ ने अकेले अपने दम पर हथियारबंद इकाई को काफी मजबूत कर लिया था, जबकि मृदुभाषी अनूप चेतिया ने राजनीतिक शाखा का विस्तार करने में अहम भूमिका निभाई।’ सुनील ने संगठन में रहते हुए अपना नाम सिद्धार्थ फूकन रखा था। वह अब गुवाहाटी में भूपेन हजारिका ट्रस्ट चला रहे हैं।
नवंबर, 1990 में उल्फा को गैरकानूनी करार दिया गया था। इसके बाद संगठन के खिलाफ पहली बार सैन्य ऑपरेशन चलाया गया। इसमें अनूप चेतिया भी गिरफ्तार हुआ था। 1991 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उल्फा को बातचीत के लिए बुलाया। चेतिया प्रतिनिधिमंडल लेकर गया। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद वह ‘लापता’ हो गया। काफी समय बाद वह ढाका में पकड़ा गया। उस समय उसके पास तीन पासपोर्ट थे। वह 1992 में परेश बरूआ और ब्रिटेन में रहने वाले असम में एक डॉक्टर के साथ ह्यूमैन राइट्स कॉन्फ्रेंस में शामिल होने जेनेवा भी चला गया था।
1993 में बांग्लादेश में सुरक्षित ठिकाना पा लेने के बाद चेतिया और परेश बरूआ ने कमाई के कई रास्ते भी खोल लिए। पॉल्ट्री, मीडिया कंसल्टेंसी, सॉफ्ट ड्रिंक और ट्रांसपोर्ट से जुड़े धंधे चलाने लगा। उसने कई देशों की यात्राएं भी कीं। कहा जाता है कि इसके लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने पासपोर्ट का इंतजाम करवाया।
1997 में इंटरपोल ने चेतिया के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। तभी से वह बांग्लादेश की जेल में था। वहां कई साल रहने और उल्फा की कमजोर होती हालत देख कर उसने अंतत: भारत लौटने का मन बनाया। वहां की सरकार ने 11 नवंबर को उसे भारत के हवाले कर दिया।