तब 22 साल के रहे अल्‍ताफ अहमद मीर अनंतनाग के जंगलात मंडी में मौजूद अपना घर छोड़कर 1990 में पाकिस्‍तान चले गए थे। वह आतंकवादी बनना चाहते थे। करीब तीन दशक बाद, मीर का घर लौटना बाकी है, मगर उन्‍होंने एक गाना ऐसा बनाया है जो कश्‍मीर और बाहर लोगों के दिल जीत रहा है। शायर गुलाम अहमद महजूर की मशहूर क्‍लासिक ‘हा गुलो’ का एक नया रूप पहला कश्‍मीरी गाना है जो कोक स्‍टूडियो पाकिस्‍तान के नए वेंचर – कोक स्‍टूडियो एक्‍स्‍प्‍लोरर का हिस्‍सा बना है।

पाकिस्‍तान के कब्‍जे वाले कश्‍मीर (पीओके) में बनाए गए इस गाने को 12 जुलाई को यूट्यूब पर रिलीज किया गया। महज 4 दिनों के भीतर इसे तीन लाख से ज्‍यादा बार देखा जा चुका है। गाने के बोल हैं, ‘हा गुलो तुही मा सा वुचवुन यार मुएं, बुलबुलू तुही चांदतूं दिलदार मुएं”। मीर के भाई जावेद अहमद ने कहा, ”वह कमाल की नक्‍काशी करता था। बचपनप से ही उसका संगीत की तरफ झुकाव रहा।”

पाकिस्‍तान के लिए रवाना होने के 4 साल बाद, मीर 1994 में कश्‍मीर लौट आए मगर आतंक के रास्‍ते पर नहीं गए। घाटी में आतंकवाद का परिदृश्‍य बदला है और विशेषकर अनंतनाग में इखवान (आतंक को काउंटर करने के लिए बनी फोर्स) का प्रभाव बढ़ा। इखवान के डर से मीर 1995 में फिर बॉर्डर पार कर गए, इस बार वह मुजफ्फराबाद में स्‍थायी रूप से बस गए।

मुजफ्फराबाद में मीर ने नक्‍काशी में ट्रेनिंग देने वाले एक एनजीओ के लिए काम शुरू किया, फिर क़सामीर नाम से एक बैंड शुरू किया। उन्‍हें अपना पहला बड़ा ब्रेक पिछले साल के अंत में मिला जब कोक स्‍टूड‍ियो की एक टीम पाकिस्‍तान में नई प्रतिभा खोजने निकली। इस शो के लिए मीर और उनके बैंड- गुलाम मोहम्‍मद डार (सारंगी), सैफ-उद-दीन शाह (तुम्‍बाखनईर, ड्रम जैसा दिखने वाला एक मशहूर कश्‍मीरी वाद्ययंत्र), मंजूर अहमद खान (नाउत, एक कश्‍मीरी वाद्ययंत्र) का चयन किया गया। यह सभी मूल रूप से कश्‍मीर के हैं।

मीर के परिवार के लिए, उसका अचानक चर्चा में आना घाटी में लौटने जैसा ही है। जावेद ने कहा, ”हमने बहुत कोशिश की वह कश्‍मीर लौट आए मगर यह संभव नहीं था। अब हमने उसे मशहूर होते देख लिया है, हम बहुत खुश हैं…जैसे वह घर लौट आया हो।”