लंदन जा रहा एअर इंडिया का विमान (AI-171) 12 जून को अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसमें 242 यात्री और चालक दल के सदस्य सवार थे। विमान के एक मेडिकल कॉलेज परिसर में दुर्घटनाग्रस्त होने से उसमें सवार एक यात्री को छोड़कर बाकी सभी की मौत हो गई। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के लगभग एक सप्ताह बाद भी DNA मैच के जरिए शवों की पहचान की जा रही है। बुधवार तक पहचान के बाद 159 शवों को रिश्तेदारों को सौंप दिया गया था। इस सबके बीच बुरी तरह जले हुए अवशेषों में नाबालिगों की पहचान करने में सबसे ज्यादा कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

एयरलाइंस के डीटेल के अनुसार, AI-171 में 12 साल से कम उम्र के 13 बच्चे थे, जिनमें से तीन की आयु अभी 2 साल भी नहीं हुई थी। कई अन्य की आयु 11 से 18 साल के बीच थी।

सूरत के नानाबावा परिवार ने 36 साल के अकील और 31 वर्षीय पत्नी हन्ना वोराजी के अंतिम संस्कार की प्रार्थना पूरी की ही थी कि बुधवार की सुबह उन्हें फोन आया कि उनकी बेटी सारा के शव की पहचान हो गई है जिसकी बोइंग ड्रीमलाइनर दुर्घटना में मौत हो गई थी। रिश्तेदार चार वर्षीय बच्ची के अवशेषों को लेने के लिए अहमदाबाद पहुंचे ताकि उसे उसके माता-पिता के बगल में दफनाया जा सके। सारा के अलावा, उन शवों में केवल एक और नाबालिग थी फातिमा शेठवाला जो 18 महीने की थी।

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इस तरह की आपदा में नाबालिग पीड़ितों की पहचान करने के लिए डीएनए तकनीक का उपयोग करने में कठिनाई के बारे में बताते हुए, गुजरात के सरकारी डेंटल कॉलेज के फोरेंसिक ओडोंटोलॉजिस्ट डॉ. जयशंकर पिल्लई ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “बच्चों में बॉडी मास कम होता है और इसलिए टिश्यू डैमेज और लंबी हड्डियों का गर्मी के संपर्क में आना अधिक होता है। हालांकि, दांत गर्मी को झेल सकते हैं क्योंकि वे अधिक मजबूत होते हैं।”

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बच्चों के दांत से डीएनए निकाला जा सकता है

डॉ पिल्लई ने कहा, “हालांकि, नाबालिगों के मामले में यह भी जटिल है। बच्चों के किसी भी दांत से डीएनए निकाला जा सकता है लेकिन आग लगने की स्थिति में सामने के दांतों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि गर्मी उन्हें खराब कर देती है। ऐसी स्थिति में हम दाढ़ों से डीएनए लेते हैं। छह साल से कम उम्र के बच्चों में, हम स्थायी दाढ़ नहीं निकाल सकते। उनके पास ज़्यादातर दूध के दांत होते हैं और कभी-कभी वे भी नष्ट हो जाते हैं क्योंकि आर्च बहुत छोटा होता है। इसलिए, हम जबड़े में चीरा लगाते हैं और अंदर विकसित हो रहे स्थायी दाढ़ को निकालने की कोशिश करते हैं।”

एक फॉरेंसिक अधिकारी ने कहा कि दुर्घटना के बाद लगी आग बहुत कम समय में 1600 डिग्री फ़ारेनहाइट से ज़्यादा तापमान तक पहुंच गई होगी। अधिकारी ने कहा, “कुछ लोगों के लिए केवल आंशिक डीएनए प्रोफ़ाइल उपलब्ध हैं जिनके बारे में हमें संदेह है कि वे नाबालिग हैं।” उन्होंने आगे कहा कि इनका मिलान सटीकता के साथ रिश्तेदारों से करना मुश्किल है।

दांतों की मदद से इस तरह किया जा रहा DNA मैच

डॉ. पिल्लई ने बताया कि फोरेंसिक ओडोन्टोलॉजी विभाग ने कई वयस्क यात्रियों के दांतों का डीएनए निकाला है या दांतों की चार्टिंग की है और कम से कम एक से छह साल की उम्र के कुछ पीड़ितों की उम्र का आकलन किया है। फिर इसकी तुलना उस आयु वर्ग के यात्रियों के लिए उड़ान सूची से की गई। उन्होंने कहा, “कुछ बच्चों में, हम दूसरे दाढ़ को विकसित होते हुए देख सकते थे, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे तीन से छह साल की उम्र के हैं। इससे खोज को सीमित करने में मदद मिली। फिर उनके डीएनए नमूनों का मिलान उनके रिश्तेदारों के डीएनए नमूनों से किया जा सका।”

वहीं, पूर्व आईपीएस अधिकारी और फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. केशव कुमार ने कहा कि परिवारों को उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हवाई दुर्घटना लगभग बम विस्फोट की तरह थी जिसमें 54,000 लीटर विमानन ईंधन एक घंटे से अधिक समय तक जलता रहा। उत्पन्न होने वाली गर्मी शरीर के लिए हानिकारक है। अगर एक दांत भी मिला है तो डीएनए मिलने की संभावना है। फॉरेंसिक एक घास के ढेर में सुई खोजने जैसा है। एक इंवेस्टिगेटर के रूप में, मैं कह सकता हूं कि मिलान मिलने की संभावना 100% है। डीएनए हजारों साल तक जीवित रह सकता है और मलबे वाली जगह पर ज़रूरत पड़ने पर डीएनए के और निशान मौजूद रहेंगे।” पढ़ें- अस्पताल से डिस्चार्ज होते ही भाई की अर्थी को दिया कंधा, विश्वास के साथ लंदन जा रहे थे अजय