गणतंत्र दिवस के मुख्य मेहमान की कुर्सी भी इस बार खाली रही। परेड के बाद इंडिया गेट पर लगने वाला मेला भी नहीं लगाया गया। किसान आंदोलन के कारण लोग बाद में भी नहीं पहुंच पाए जिससे फेरी वाले भी उदास नजर आए। हालांकि कोरोनाक ाल के बावजूद परेड में शामिल प्रतिभागी व कलाकार पूरे जोश से भरे रहे। हालांकि उत्साह व ऊर्जा से भरे हुए वे कदमताल करते नजर आए भी लेकिन दर्शक दीर्घा में इनका हौसलाआफजाई करने वाले कम थे। अधिकतर कुर्सियां खाली पड़ी थीं। कई बच्चों और बुजुर्गों को परेड स्थल पर पहुंचने के बाद सुरक्षाकारणों से निराश होकर लौटना पड़ा। विदेशी मीडिया दीर्घा भी खाली था।
ठीक दस बसे शुरू हुआ समारोह करीब पौने बारह बजे समाप्त हो गया। कोरोना के कारण कार्यक्रम में कुछ प्रस्तुतियां पहले से ही काट दी गई थीं। आमतौर से कार्यक्रम 1.50 मिनट पर समाप्त होता है। इस दौरान दर्शकों की संख्या बहुत कम थी। सभी ने मास्क पहन रखे थे। पिछले जहां दर्शकों की संख्या 1.25 लाख थी। वहीं, इस बार कटौती कर यह 25,000 तक कर दी गई। पीपीई किट पहने सुरक्षाकर्मी सुरक्षा जांच में लगे थे। दर्शकों ने निर्धारित दूरी कायम रखी। खड़े होकर कार्यक्रम देखने की अनुमति नहीं थी।
आयोजन से पहले जारी किए गए परामर्श के अनुसार 15 साल से कम उम्र के बच्चों को इस बार कार्यक्रम में आने की अनुमति नहीं थी। इस बार बहादुर बच्चे भी इसी के चलते समारोह में राजपथ की शान नहीं बन पाए। रक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बार मार्चिंग दस्तों में जवानों की संख्या भी 144 से घटाकर 96 कर दी गई जिससे कि वे भौतिक दूरी कायम रख सकें। महामारी रोकथाम संबंधी नियमों की वजह से इस बार राजपथ पर मोटरसाइकिलों के करतब भी नहीं दिखे जो हर साल मुख्य आकर्षण होते थे।
खली परेड न देखने की कमी: इस बार मार्चिंग दस्ते लालकिले जाने की जगह नेशनल स्टेडियम में ही रुक गए। जिससे दरियागंज ,नई सड़क व चांदनी चौक के बाशिंदे मायूस हुए। दरियागंज में अपने परिचित के घर रुककर हर बार परेड देखने वाले दिनेश ने कहा कि एक बार भी परेड देखना नहीं छूटा था। यह पहला मौका है कि वे महरूम हुए। एक जवान की पत्नी अनुमिता ने बताया कि वह अपने बेटे अनुभव को लेकर आइ तो हैं पर यहां पहुंच कर पता चला कि बच्चों को प्रवेश नहीं था।

