अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी ने सात साल बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन चुनाव में भारी जीत हासिल की है। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ASA) और सीपीआई (एम) की स्टूडेंट विंग स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के बीच हुए मतभेद और एनएसयूआई के खिलाफ बढ़ती नाराजगी का फायदा उठाते हुए एबीवीपी ने जीत दर्ज की। दिल्ली यूनिवर्सिटी के बाद यह दूसरा परिसर है, जहां एबीवीपी ने जीत दर्ज की।

एबीवीपी ने कहा कि रविवार को सभी छह पदों (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव, सांस्कृतिक सचिव और खेल सचिव) पर जीत अराजकता, हिंसा और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को फैलाने वालों के खिलाफ एक जनादेश है। इसमें आगे कहा गया, “आज के GenZ छात्रों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे खोखले नारों और विनाशकारी राजनीति को नकारते हैं। इसके बजाय उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिबद्ध एक संगठन में अपना विश्वास जताया है।”

ASA और CPIM की स्टूडेंट विंग के बीच मतभेद का फायदा हुआ

संघ से जुड़े इस संगठन को अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ASA) और सीपीआई (एम) की स्टूडेंट विंग स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के बीच हुए मतभेद से फायदा हुआ। नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) को कांचा गाचीबोवली में यूनिवर्सिटी की जमीन को लेकर हुए विवाद के कारण छात्रों के एक वर्ग का समर्थन नहीं मिला।

इस साल की शुरुआत में कांग्रेस सरकार ने तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन फॉर डेवलपमेंट के माध्यम से विकास के लिए 400 एकड़ जमीन नीलामी करने का फैसला किया था, लेकिन पर्यावरणविदों, सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट और छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। एबीवीपी इन विरोधों का फायदा उठाने में कामयाब रही।

एसएफआई के एक छात्र नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस बार एएसए के साथ गठबंधन इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि आंबेडकरवादी संगठन ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की स्टूडेंट विंग मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन और जमात-ए-इस्लामी के युवा संगठन फ्रेटरनिटी को गठबंधन में शामिल करने पर जोर दिया। एसएफआई नेता ने कहा, “हम अपनी विचारधारा से समझौता करके किसी कट्टरपंथी संगठन के साथ गठबंधन नहीं कर सकते थे। एएसए ने पैनल में अपनी भागीदारी पर जोर दिया, जिसे हमने अस्वीकार कर दिया।”

एएसए ने पलटवार करते हुए कहा कि गठबंधन इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि एसएफआई मुस्लिम छात्रों को हाशिए पर धकेलने की कोशिश कर रहा था। संगठन के एक नेता ने कहा, “हमने न सिर्फ एमएसएफ, बल्कि ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन को भी गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की थी। हालांकि, एसएफआई इसके लिए तैयार नहीं था। इसलिए, हमने गठबंधन न करने का फैसला किया।”

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हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के वाइस-प्रेसिडेंट जी मोहित ने एबीवीपी की जीत का श्रेय दक्षिणपंथी मोड़ को दिया। उन्होंने कहा, “एबीवीपी एसएफआई सहित अन्य दलों की तुलना में नए-नए परिसर में शामिल हुए युवा छात्रों को तेजी से संगठित करने में सक्षम रही।” उन्होंने आगे कहा कि एबीवीपी ने अपने समर्थकों को संगठित करने के लिए गणेश चतुर्थी जैसे धार्मिक त्योहारों का इस्तेमाल किया।

एनएसयूआई लड़खड़ा गई

एबीवीपी उम्मीदवारों की भारी अंतर से जीत से इस बात का पता चलता है कि एनएसयूआई का खराब प्रदर्शन भी एक फैक्टर था। एबीवीपी के नेशनल सेक्रेटरी श्रवण बी राज ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह जीत एबीवीपी के 300 कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत का नतीजा है। कांचा गाचीबोवली में, एबीवीपी कार्यकर्ताओं को लाठियों का सामना करना पड़ा और उन्हें तेलंगाना पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और रिमांड पर ले लिया।”

एनएसयूआई के एक नेता ने कहा, “एबीवीपी छात्रों को यह भूलाने में सफल रही कि 10 साल पहले रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में उनका संगठन सवालों के घेरे में था।” बता दें कि जनवरी 2016 में पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद जातिगत भेदभाव के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। रोहित ने खुद को दलित बताया था और अपने सुसाइड नोट में लिखा था, “मेरा जन्म मेरे लिए एक घातक दुर्घटना है।” वेमुला एएसए के नेता थे।

एबीवीपी ने 2018 में भी जीता था चुनाव

वेमुला की मृत्यु के दो साल बाद तक एएसए-एसएफआई गठबंधन ने परिसर में चुनावों में भारी जीत हासिल की। ​​हालांकि, 2018 में, जब यह गठबंधन सफल नहीं हुआ, तो एबीवीपी ने चुनाव जीत लिया। श्रवण बी राज ने कहा, “रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर इन तथाकथित प्रगतिशील ताकतों द्वारा हमारे संगठन के खिलाफ चलाए गए बदनामी अभियान के ठीक दो साल बाद, एबीवीपी ने 2018 में चुनाव जीता, यह दर्शाता है कि यूओएच परिसर का छात्र समुदाय उनकी राजनीतिक चालों में नहीं फंसा।”

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