पिछले छह दिनों से सुरक्षा बलों ने बीजापुर की कर्रेगुट्टा पहाड़ियों को घेर रखा है और पूरी रणनीति के साथ उस पर चढ़ाई कर रहे हैं। यह पहाड़ियां करीब 700 मीटर ऊंची हैं और तेलंगाना-छत्तीसगढ़ सीमा पर लगभग 20 किलोमीटर तक फैली हुई हैं। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इन पहाड़ियों में माओवादी नेतृत्व के प्रमुख सदस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की सबसे खतरनाक इकाई, बटालियन-1 द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही है।

अधिकारियों के मुताबिक यह क्षेत्र कभी बटालियन का स्थायी ठिकाना नहीं था

अधिकारियों का कहना है कि दंडकारण्य में यह अभियान 2024 में शुरू हुए नक्सल विरोधी अभियानों का सबसे बड़ा कदम हो सकता है, जिसमें अब तक 363 माओवादी मारे गए हैं और माओवादी नेताओं को पहाड़ियों में खदेड़ दिया गया है। अभियान में शामिल एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, “यह इलाका पहले गुप्त बैठकों के लिए इस्तेमाल होता था, लेकिन कभी बटालियन का स्थायी ठिकाना नहीं था। लगातार अभियानों ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे इन दुर्गम पहाड़ियों में शरण लें, जहां अब उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचा है।”

बटालियन-1 को अब तक की सबसे भीषण मुठभेड़ों के लिए जिम्मेदार माना जाता है

बटालियन-1 को अब तक की सबसे भीषण मुठभेड़ों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इनमें कम से कम 155 सुरक्षाकर्मियों की जान गई, जिनमें 6 अप्रैल 2010 को सुकमा के ताड़मेटला में शहीद हुए 76 सीआरपीएफ जवान भी शामिल हैं। अधिकारियों ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि इस मौजूदा ऑपरेशन में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की कोबरा यूनिट की 210वीं बटालियन, छत्तीसगढ़ पुलिस का स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और सीआरपीएफ की अन्य नियमित टुकड़ियां मिलाकर लगभग 7,000 जवान तैनात किए गए हैं।

सुरक्षा बलों का अनुमान है कि बटालियन-1 केंद्रीय समिति (सीसी) के सदस्य पुल्लुरी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना और सुजाता, पीएलजीए प्रमुख बरसे देवा, दक्षिण बस्तर के सैन्य कमांडर मादवी हिडमा, दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति के सदस्य सन्नू और तेलंगाना राज्य समिति के दामोदर जैसे शीर्ष माओवादी नेताओं की रक्षा कर रही है।

अब तक अभियान में तीन माओवादियों के शव बरामद किए जा चुके हैं। बस्तर रेंज के आईजीपी सुंदरराज पी ने बताया कि माओवादियों को बीते दिनों में “भारी नुकसान” उठाना पड़ा है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, “अभी तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कितने माओवादी मारे गए या घायल हुए हैं, लेकिन अनुमान है कि लगभग आठ माओवादी मारे जा चुके हैं।”

सुरक्षा बलों के लिए चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। दो जवान आईईडी धमाकों में मामूली रूप से घायल हुए हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि घने जंगल, दुर्गम पहाड़ी इलाका और भीषण गर्मी अभियान को कठिन बना रहे हैं। पहाड़ियों से माओवादी दूर से सुरक्षाबलों की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं, जिससे उनकी पकड़ मजबूत बनी हुई है। पूर्व डीजीपी आर. के. विज ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, “बटालियन-1 ने पहाड़ी की चोटी को रणनीतिक ठिकाना बनाया हुआ है। उन्होंने आसपास आईईडी बिछाई होंगी और उनके पास स्नाइपर भी हो सकते हैं, इसलिए सुरक्षाबलों को बेहद सतर्कता से आगे बढ़ना होगा।”

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गर्मी के अलावा निर्जलीकरण भी एक गंभीर चुनौती बनकर सामने आ रहा है। एक अधिकारी ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र में ताजे पानी के झरने और गुफाएं माओवादियों को छिपने में मदद कर सकती हैं। हालांकि, एक राहत की बात यह भी है कि इस इलाके में कोई मानव बस्ती नहीं है, जिससे नागरिक हानि का खतरा नहीं है। अधिकारी ने कहा, “नागरिकों के घायल होने की संभावना न के बराबर है, जो सुरक्षा बलों के लिए एक महत्वपूर्ण फायदा है।”

फिलहाल, वरिष्ठ अधिकारियों ने अभियान की बारीकियों पर औपचारिक रूप से टिप्पणी करने से परहेज किया है। अतिरिक्त महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन्स) विवेकानंद सिन्हा ने सिर्फ इतना कहा कि सभी जवान सुरक्षित हैं और अभियान सुचारू रूप से जारी है।

हालांकि, इस ऑपरेशन में शामिल एक अन्य अधिकारी ने इसे “निर्णायक” करार दिया है और कहा कि यह 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को समाप्त करने की राष्ट्रीय योजना की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

इस बीच, कई आदिवासी अधिकार संगठनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इस अभियान को रोकने और युद्धविराम की मांग की है। संगठनों का कहना है कि बस्तर (छत्तीसगढ़), गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), पश्चिम सिंहभूम (झारखंड) और आसपास के आदिवासी इलाकों में आम नागरिकों का जीवन “अभूतपूर्व और तत्काल खतरे में है”।

यह अभियान ऐसे समय में भी जारी है जब माओवादी संगठन की ओर से युद्धविराम की पहल की गई है। माओवादी नेता रूपेश उर्फ सतीश उर्फ कोपा, जो 2003 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर हमले में शामिल था, ने यूट्यूब चैनल ‘बस्तर टॉकीज’ को वीडियो इंटरव्यू में युद्धविराम की अपील की है। हालांकि सुरक्षा एजेंसियाँ इसे माओवादियों की “फिर से संगठित होने की कोशिश” के रूप में देख रही हैं।