मुंबई में समुद्र के रास्ते पाकिस्तान से आकर आतंकियों द्वारा किए गए हमले (26/11) को सात साल हो गए हैं। पर आज भी हमारे समुद्र तटों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। मुंबई के समुद्र तटों की निगहबानी के लिए तटीय पुलिस की कई चौकियां तो बनाई गई हैं, लेकिन इनमें कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। बांद्रा-वर्ली सी लिंक पर दक्षिण की ओर बढ़ें तो बाईं ओर आपको एक चौकी दिखाई देगी। आठ बांस के खंभों और एल्युमीनियम की चादरों से यह चौकी बनाई गई है। इसे स्थानीय मछुआरों की मदद से खड़ा किया गया है। ढांचा खड़ा करने के लिए पत्थर सी लिंक के निर्माण के दौरान छोड़ी गई चीजों में से लिए गए हैं। यहां तैनात पुलिस की बात करें तो रोज दो जवानों की ड्यूटी लगती है। उनके लिए एक सेल्फ-लोडिंग राइफल और 50 गोलियां दी गई हैं। इसी के दम पर उन्हें अरब सागर की तट की रक्षा करनी है।
चौकी पर तैनात एक जवान ने अपनी पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर कहा, ‘सरकार को हमें हथियार तो देने चाहिए। दो साल से मैं यहां हूं और तभी से सुन रहा हूं कि चौकी के लिए पक्का मकान बनेगा। अब तक कुछ नहीं हुआ है।’ दो साल से हर बार बारिश में चौकी ढह जाती है। उसे फिर से बनाना होता है। वहां ड्यूटी करने वाले दूसरे सिपाही ने बताया, ‘2013 में हमें तंबू दिया गया। पर तेज हवा में तंबू उखड़ जाता था। हम बारिश में भीगते थे। अगर हमें सुरक्षा करनी है तो कम से कम सुरक्षित व पक्की जगह तो मिले। इसलिए हमने बांस और एल्युमीनियम की चादरों से ढांचा खड़ा कर लिया।’ दूसरी चौकियों का हाल भी कोई अलग नहीं है। बधवार पार्क (जिस तट पर 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तानी आतंकी उतरे थे) की चौकी पर बस एक बेंच और कुछ पुलिसकर्मी दिखे। वर्ली और वरसोआ की चौकियों में भी एक शेड के नीचे दो बेंच के अलावा कुछ और नहीं दिखा। इन चौकियों पर ड्यूटी करने वाले सिपाहियों को रात की पाली में खाना-पानी घर से लेकर आना होता है। रात में रोशनी के लिए एक मात्र विकल्प सौर ऊर्जा से जलने वाले बल्ब हैं। एक सिपाही का कहना था कि हमें समंदर पर नजर रखने के लिए नाइटविजन बाइनोकूलर की सख्त जरूरत है।
ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा जनवरी 2015 में जारी गाइडलाइंस में कहा गया है कि जिस चौकी में 10 जवान काम करते हों, उसका एरिया कम से कम 135 वर्ग मीटर जरूर हो। इस बारे में जब डिप्टी पुलिस कमिश्नर किरण कुमार चव्हाण (पोर्ट जोन) से बात की गई तो उनका कहना था, ‘यहां पक्का मकान बनाए जाने के प्रस्ताव पर विचार चल रहा है। बांद्रा में तैनात जवानों ने अपनी ओर से अस्थायी ढांचा इसलिए तैयार कर लिया क्योंकि वह जगह एकदम अलग-थलग है और हमारी गश्ती नौकाएं भी वहां रुकती हैं।’