सुकृत बरुआ, अभिषेक अंगद
दादरी के बिसाहड़ा गांव के जिस मकान में मोहम्मद अखलाक और उसका परिवार रहता था, उसके तीन दरवाजों पर तीन ताले लटके हुए हैं, जिनमें जंग लग गई है। राजपूतों के गांव का यह इकलौता मुस्लिम घर था। तीन साल पहले, 50 साल के अखलाक को उसके घर से खींचकर बाहर निकाला गया था और बीफ रखने के शक में पीट-पीटकर मार दिया गया था। अखलाक का परिवार कहता है कि वह दोबारा यहां नहीं आ सकते। परिवार अभी भी उस सदमे से उबर नहीं सका है।
अखलाक का मामला फास्ट-ट्रैक कोर्ट में है। मामला दर्ज होने के बाद से 45 सुनवाइयां हो चुकी हैं, मगर ट्रायल नहीं शुरू हो सका है क्योंकि नगर अदालत अब तक आरोपियों के खिलाफ लगी धाराओं पर बहस कर रही है। अखलाक के परिवार के वकील, युसूफ सैफी के अनुसार, पुलिस ने सभी आरोपियों को हत्या, दंगा करने और गैरकानूनी ढंग से जमा होने जैसी धाराओं में गिरफ्तार किया है। सभी आरोपियों को जमानत मिल चुकी है। एक आरोपी रवीन सिसोदिया को जेल से अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बाद में उसकी मौत हो गई।
अखलाक के छोटे भाई, मोहम्मद जान (50) ने कहा, ”केस अब तक शुरू भी नहीं हुआ है, खत्म होने का सवाल ही कहां उठता है? …आरोपियों के खिलाफ आरोप भी अभी तक तय नहीं हुए हैं जबकि यह फास्ट-ट्रैक कोर्ट है। तीन साल पहले पुलिस द्वारा दायर की गई चार्जशीट में भी उन्हीं के नाम हैं जो अखलाक की बहन शाइस्ता ने दिए थे। इसके अलावा और लोगों (संदिग्धों) की पहचान और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कुछ नहीं किया गया।”
जान के अनुसार, बचाव पक्ष के वकील कई तरह की अपीलों के जरिए मामले को टाल रहे हैं। मामले की सुनवाई कर रहे जज भी दो बार बदले जा चुके हैं। अखलाक के बड़े भाई मोहम्मद सरताज, जो वायुसेना में काम करते हैं, ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि वे, उनके भाई-बहन और मां मीडिया से बात करने को तैयार नहीं हैं। सरताज ने कहा, ”घटना का दर्द और उसके बाद जो हुआ, हम उस बारे में बात नहीं करना चाहते।”
सरताज (29) शाइस्ता (23) और उनके भाई दानिश (25) को भी भीड़ ने पीटा था। यह सभी अपनी मां इकरामां (43) और दादी असगरी (78) के साथ दिल्ली के सुब्रत पार्क स्थित एयरफोर्स क्वार्टर्स में रहते हैं क्योंकि उन्हें लगा था कि गवाह बनने से शाइस्ता, दानिश और इकरामां की जान खतरे में पड़ जाएगी। जान ने कहा, ”हर साल बकरीद के समय, बहुत दुख होता है। परिवार ने उस घटना के बाद से ईद नहीं मनाई है।”
2017 में मामले के 17 आरोपियों को जमानत पर छोड़ दिया गया था। अधिकतर गांववाले 28 सितंबर, 2015 की घटना को ‘हादसा’ कहते हैं। एक आरोपी विनय के पिता ओम महेश ने कहा, ”हमको एक शब्द मिल गया है – मॉब लिंचिंग। जब कहीं भी कोई भीड़ किसी को पीट देती है तो लोग बिसाहड़ा की बात करते हैं। 2019 चुनाव से पहले बिसाहड़ा का नाम फिर उछलेगा और कीचड़ में घसीटा जाएगा।”

