बगल में स्मार्टफोन रखकर सोने वाले लोगों के लिए यह एक वॉर्निंग है। रिसर्चरों को दो महिलाओं में ट्रांसिएंट स्मार्टफोन ‘ब्लाइंडनेस’ के लक्षण मिले। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें अंधेरे में स्मार्टफोन्स में आंखें गड़ाने की वजह से इन महिलाओं के एक आंख की रोशनी चली गई। इस बीमारी की पहली मरीज 22 साल की इंग्लैंड की एक लड़की है। सोने से पहले उसे स्मार्टफोन में टकटकी बांध के देखने की आदत थी। http://www.npr.org की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘वह बाईं ओर लेटकर अपनी दाईं आंख खोलकर स्मार्टफोन की स्क्रीन देखती थी। उसकी बाईं आंख इस दौरान तकिए से बंद रहती थी।’ दूसरी महिला की उम्र 40 के लपेटे में है। उसे भी इसी तरह की समस्याएं आईं। वो सुबह उठने से पहले बेड पर लेटे लेट ही स्मार्टफोन पर खबरें पढ़ती थी। ऐसा एक साल तक चलता रहा, जब तक उसके आंखों की कॉर्निया क्षतिग्रस्त नहीं हो गई।
लंदन के मूरफील्ड्स आई हॉस्पिटल के डॉक्टर उमर महरू का कहना है, ‘वे अपने स्मार्टफोन देख रही थीं। वे बेड पर लेटी रहती थीं, इसलिए उनकी एक आंख बंद रहती थी।’ महरू के मुताबिक, एक रेटिना रोशनी की जबकि दूसरी आंख की रेटिना अंधेरे के हिसाब से एडजस्ट हो गईं। महरू के मुताबिक, रेटिना की यह बड़ी खासियत होती है कि वे रोशनी के विभिन्न स्तरों के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर लेती है। उसका यह गुण किसी कैमरे से बेहतर होता है। ये रेटिना लगातार खुद को एडजस्ट करती रहती है। चाहें हम कम रोशनी वाले कमरे में जाएं या बाहर निकलकर तेज रोशनी में। हालांकि, इन दोनों महिलाओं ने एक दुर्लभ हालात का सामना करना पड़ा, जब रेटिना का यह बदलाव सच में नजर आता।
समस्या की जड़ को समझने के लिए रिसर्चरों ने दोनों मरीजों को कहा कि वे अपने स्मार्टफोन पहले सिर्फ बाईं और बाद में सिर्फ दाईं आंख से देखें। उन्होंने पाया कि उस आंख की रोशनी अस्थायी तौर पर चली गई, जिसका इस्तेमाल फोन की ब्राइट स्क्रीन को देखने में इस्तेमाल हो रहा था। इस बात की पुष्टि करने के लिए महरू एक अंधेरे कमरे में गए। इस दौरान उनकी एक आंख बंद थी। उन्होंने एक स्मार्टफोन को 20 मिनट तक देखा। इसके बाद, उन्होंने स्क्रीन को ऑफ कर दिया। कम रोशनी के बाद रेटिना स्क्रीन की तेज रोशनी में एक्सपोज होने के बाद नई रोशनी के हिसाब से सेट में काफी वक्त लगा। महरू के मुताबिक, कई दूसरे मरीज ने कहा है कि उन्होंने भी स्मार्टफोन के यूजर के बाद आंखों की रोशनी कम होने का अनुभव हुआ है। उनके मुताबिक, अभी हमें स्मार्टफोन की रोशनी के कुप्रभाव के बारे में कुछ भी नहीं पता है। हालांकि, यह परेशान कर सकता है।