साल था 1992। बिहार में दुर्गा पूजा का विसर्जन होने वाला था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन इसी दौरान सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पास एक फोन आया, जिससे उनके माथे पर बल पड़ गया। फोन किसी और ने नहीं बल्कि सीतामढ़ी से उन्हीं की पार्टी के विधायक ने किया था और जो जानकारी दी थी वह बेहद डराने वाला था। दरअसल, दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान सीतामढ़ी में दो समुदाय आमने सामने आ गए और मामला इतना बढ़ गया कि एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। मामला संभल नहीं रहा था।
फौरन कराया हेलीकॉप्टर का इंतजाम: लालू अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि स्थानीय विधायक शाहिद अहमद खान ने फोन कर मुझे घटना के बारे में विस्तार से बताया। वह सब बेहद डरावना था। उनके फोन के बाद मैंने तुरंत हेलीकॉप्टर का इंतजाम करने को कहा और सीतामढ़ी के लिए रवाना हो गया।
लालू यादव लिखते हैं कि हमारा हेलीकॉप्टर सीतामढ़ी के ऊपर चक्कर काटने लगा। मैंने आसमान से जो देखा दंग रह गया। लोग हाथ में फरसा, दाव, कुदाल जैसे हथियार लेकर बाहर खुलेआम टहल रहे थे और लूट और हिंसा कर रहे थे। मैं वहीं सरकारी गेस्ट हाउस में रुक गया।
खुली जीप में निकल गए दंगा शांत कराने: लालू लिखते हैं कि मैंने तुरंत एक खुली जीप का इंतजाम कराया, जिसमें लाउडस्पीकर की भी व्यवस्था हो। साथ ही पांच और जीप का इंतजाम करने को कहा ताकि पुलिसकर्मी मेरी सुरक्षा में शामिल रहे। मैं खुली जीप में खड़ा हो गया और लाउडस्पीकर से चिल्लाने लगा कि कर्फ्यू लग गया है। यह सुनकर लोग अपने घरों की तरफ भागने लगे। मैं पूरी ताकत से चीख रहा था और कह रहा था कि अगर खुले में कोई दिख गया तो पुलिस गोली मार देगी।
लालू लिखते हैं कि स्थिति ऐसी थी कि कई चौराहों पर पुलिस को हवाई फायर करने का आदेश देना पड़ा। लेकिन इसका असर यह हुआ कि असामाजिक तत्व घरों में जाने को मजबूर हो गए। गेस्ट हाउस में लौटते हुए मैंने देखा कि गलियां सूनी हो गई हैं और इस तरह शांति बहाल हो पाई।
5 लोगों की चली गई थी जान: लालू लिखते हैं कि बाद में मैंने प्रशासनिक अधिकारियों से मुझे दंगा ग्रस्त इलाकों में ले जाने को कहा। उस दंगे में 5 लोगों की जान चली गई थी, कई लोग घायल हो गए थे। सैकड़ों लोगों की संपत्ति जला दी गई थी। मैं कई दिन तक गेस्ट हाउस में डटा रहा और राहत और पुनर्वास की निगरानी करता रहा।