ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया बीजेपी की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। विजयाराजे ने किताब ‘रॉयल टू पब्लिक लाइफ’ में अपने जीवन से जुड़े कई किस्से साझा किए थे। एक ऐसा ही वाकये का जिक्र उन्होंने किया था जब वह पिता के घर झांसी से वाराणसी पढ़ाई करने के लिए गई थीं। विजयाराजे ने बताया था कि जब वह पहली बार वाराणसी में अपने कॉलेज के हॉस्टल में पहुंचीं तो उनके कपड़े देखकर सहेलियां हैरान रह गई थीं।
बकौल विजयाराजे सिंधिया, वाराणसी सागर (नेपाल का शहर जहां विजयाराजे सिंधिया का जन्म हुआ था) से बहुत बड़ा था। यहां की प्राकृतिक सुंदरता किसी को भी प्रभावित कर सकती थी। यहां पहुंचने के बाद शुरुआती दिन तो बहुत व्यस्त थे। मुझे इन सभी चीजों को अपनाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। हॉस्टल बहुत छोटा था, लेकिन यहां मेरे पास एक अलग कमरा जरूर था। उस कमरे को मुझे कुछ अन्य लड़कियों के साथ शेयर करना था।
साड़ियां देखती रह गई थीं सहेलियां: विजयाराजे आगे बताती हैं, मैं यहां ज्वेलरी और महंगी साड़ियों से भरा काले रंग का ट्रंक लेकर पहुंची थी। ये काफी बड़ा था जिसने कमरे में अच्छी-खासी जगह घेर ली थी। मैंने अपने कपड़े ट्रंक से बाहर निकालने शुरू किए तो मेरी सहेलियां भी उन्हें देखकर हैरान रह गई थीं। मैं भगवान कृष्ण की मूर्ति भी अपने साथ लाई थी। ये देखकर सभी लड़कियां आश्चर्यचकित थीं। बाद में मुझे पता चला कि वह मूर्ति से ज्यादा मेरी ज़री वाली साड़ियां देख रही थीं। बाद में उन्होंने इसे मुझे बताया भी था।
खैर, मेरे पास ज्यादातर तो सिल्क की साड़ियां ही थीं। अगले दिन मैं साड़ी और झालरदार ब्लाउज़ पहनकर क्लास में गई। मैंने कुछ हीरे की ज्वेलरी भी पहन रखी थी। क्लास की सभी लड़कियां मुझे घूर रही थीं जैसे कि मैं प्रदर्शनी में रखा कोई सामान हूं। मेरे लुक को देखने के बाद सभी लड़कियों ने बातें करना शुरू कर दिया था। मुझे लगा कि मैंने कोई गलती कर दी है। फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। सभी लड़कियों ने कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी और किसी के पास कोई ज्वेलरी तक भी नहीं थी।