Netaji Subhash Chandra Bose Speech, Bhashan:आज (23 जनवरी 2019) भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वीर क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती है। ओडिसा के कटक में मशहूर वकील जानकीनाथ बोस और प्रभावती के घर 23 जनवरी 1897 को बोस का जन्म हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा कटक में पूरी करने के बाद वह कलकत्ता यूनिवर्सिटी पहुंचे। जहां से उन्होंने वर्ष 1919 में प्रथम श्रेणी से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की।
अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए बोस ने 1920 में आईसीएस (अब आईएएस) की परीक्षा दी और चौथा स्थान पाया। लेकिन जिसके मन में बचपन से ही आजादी का तुफान हिलोरें मार रहा हो, वह अंग्रेजों की अधीनता कैसे स्वीकार करता। करीब एक साल बाद ही उन्होंने 22 अप्रैल 1921 को इस पद से इस्तीफा दे दिया और देश को फिरंगियों से आजाद कराने में जुट गए।
वर्ष 1941 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर पहुंचे और वहां हिटलर से मुलाकात की। नेताजी ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ रहे भारतीय क्रांतिकारियों की मदद के लिए हिटलर से मदद मांगी थी। भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया। युवाओं से कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा।” इसके बाद 1943 में बोस जापान की सहायता से साउथ ईस्ट एशिया पहुंचे। यहां उन्होंने मोहन सिंह द्वारा बनाई इंडियन नेशनल आर्मी की कमान संभाली। सुभाष चंद्र बोस ने युद्ध के पहले अपने भाषण में गांधी से आशीर्वाद मांगते हुए शुरुआत की थी। सुभाष चंद्र बोस ने ही सिंगापुर से रेडियो पर उद्बोधन देते हुए गांधी को पहली बार राष्ट्रपिता कहा था।
सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए आमलोगों के बीच एक संदेश दिया था। उस स्पीच में उन्होंने कहा था, “बहनों एवं भाईयों। हमने जो आजादी की लड़ाई छेड़ रखी है, उसे तब तक जारी रखना होगा, जब तक हमें मुकम्मल आजादी हासिल न हो। दला-दली, बहस-नुवाहस, और विभिन्न मतभेदों को भुलाककर विभिन्न दिशाओं में बिखरी ताकतों को जितना शीघ्र हम केंद्रित कर सकेंगे, उतना ही जल्द हम आजादी हासिल कर सकेंगे। हमारे सामने इस वक्त सबसे बड़ी समस्या संघ, शासन, विधान को हमेशा के लिए दफना देने की है। तभी हम अपने मन के मुताबिक अपना शासन कर सकेंगे। वर्तमान शासन विधान को हमारी मर्जी के खिलाफ साम्राज्यवाद को मजबूत कर हमारी गुलामी की जंजीरों को और मजबूत करने के लिए बनाया गया है। इसे आप हरगिज स्वीकार न करें। आप संगठित शक्ति से शांति और अहिंसापूर्वक आत्म बलिदान करने के लिए जल्द से जल्द तैयार हो जाइए।”
पूरी स्पीच इस वीडियो में सुनें।
वर्ष 1921 में 20 जुलाई को सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी से मुलाकात की। गांधी जी सलाह पर वे स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने लगे। साथ ही सामाजिक कार्यों में भी जुटे रहे। एक बार बंगाल में भीषण बाढ़ आयी। इस दौरान उन्होंने प्रभावित लोगों को जरूरी वस्तुएं मुहैया करवायी और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम किया। समाज सेवा का काम सही से चलता रहे इसके लिए ‘युवक दल’ की स्थापना की।
जब भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई तो सुभाष चंद्र बोस ने उनकी रिहाई के लिए महात्मा गांधी से बात की। लेकिन गांधी जी ने उनकी बात को अनदेखा कर दिया। इस वजह से वे महात्मा गांधी और कांग्रेस के काम करने के तरीके से नाराज हो गए थे।
सुभाष चंद्र बोस ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था, ताकि देश से अंग्रेजों को खदेड़ देना है। हालांकि, 18 अगस्त 1945 में एक हवाई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि इस विमान दुर्घटना में उनकी मौत नहीं हुई थी। सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी रहस्य बनी हुई है। जितनी मुंह, उतनी कहानियां है। इन सब के बीच एक बात यह भी है कि आज हम सब जिस ‘जय हिंद’ का नारा लगाते हैं, वह सुभाष चंद्र बोस ने ही दिया था। जय हिंद।
