फागुन महीने में रंगो का त्योहार होली आता है। जिसे पूरा देश धूमधाम से मनाता है। इस दिन सभी एक दूसरे पर रंग लगाते हैं और खुशिया बांटते हैं। खासतौर से इस त्योहार के लिए घर में गुंझिया बनाई जाती है। होली के मौके पर अपने प्यार का इजहार रंगों के जरिए किया जाता है। इससे एक दिन पहले होलिका दहन होता है मतलब होली जलाई जाती है जिसके बाद दूसरे दिन हवा में अबीर और गुलाल नजर आते हैं। इस त्योहार में रंगो के जरिए संस्कृति के रंग में रंगकर सभी भिन्नताओं को मिटा दिया जाता है। जिस तरह हमारे देश में हर त्योहार की शुरुआत पूजा से होती है। ठीक उसी तरह होली का उत्सव मनाने से पहले भी पूजा की जाती है। इसे घर में सुश शांति, समृद्धि, संतान, धन आदि के लिए किया जाता है। अगर आपको इसकी पूजा विधि के बारे में नहीं पता तो हम आपको इसके बारे में बता देते हैं। होली की पूजा इस तरह हैं:-
पूजा करने के लिए एक साफ स्थान को ढूंढे या फिर उसे साफ करें।
बसंत पंचमी के दिन लकड़ियों के गट्ठर को एक पब्लिक प्लेस में रख दें।
लोग लकड़ियों के बीच में टहनियां, सूखी पत्तियां और ज्वलनशील चीजें डालते हैं।
होलिका दहन के दिन होलिका और प्रह्लाद का एक पुतला बीच में रखकर जला दें।
होलिका के पुतले को ज्वलनशील पदार्थ से जबकि प्रह्लाद के पुतले को उन चीजों से बनाएं जो आग नहीं पकड़ते हैं।
होलिका दहन वाले दिन इसमें आग लगाएं और ऋ्गवेद में लिखे हुए रक्शोगना मंत्रों का उच्चारण करें और राक्षसी ताकतों को दूर भगाएं।
होलिका दहन की राख को लोग सुबह इक्ट्ठा करते हैं और इन्हें पवित्र माना जाता है। इसे होली प्रसाद के तौर पर अपने पैर पर लगाते हैं।
पैरों पर राख लगाना खुद को पवित्र करने जैसा होता है।
अलग अलग समुदायों में होली को अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। मारवाड़ी महिलाएं दिन में या शाम को होली पूजा करती हैं। यानि होलिका को आग लगाने से पहले पूजा की जाती है। इसे ठंडी होली कहा जाता है। पूरी पूजा की प्रक्रिया को शादीशुदा महिलाओं के लिए मंगलदायक माना जाता है। यह उनके पति के लिए स्वास्थ्य और गुड लक लाता है।
