होली का त्यौहार आता है तो फिजाओं में गुलाल और अबीर के साथ प्रेम का रंग भी घुल जाता है और जहां प्रेम की बात हो वहां शेर-ओ-शायरी का होनी भी लाजमी है। उर्दू शायरी भी होली के रंगों से बच नहीं पाई है।
18वीं सदी से आज तक के शायरों ने अपने कलामों में होली का खूब रंग बिखेरा है। इस मौके पर हर शख्स अपने दोस्तों, करीबियों और रिश्तेदारों को खास शायरी लिखकर बधाइयां देने वाला है। तो आप भी इस मौके पर पीछे ना रहें और इन खास होली शायरी (Holi Shayri) के जरिए अपनों के दिन को खास बनाएं-
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
-मुसव्विर सब्ज़वारी
मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
-लाला माधव राम जौहर
साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की
हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की
-उफ़ुक़ लखनवी
ग़ैर से खेली है होली यार ने
डाले मुझ पर दीदा-ए-ख़ूँ-बार रंग
-इमाम बख़्श नासिख़
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब की होली में रहा बे-कार रंग
और ही लाया फ़िराक़-ए-यार रंग
-इमाम बख़्श नासिख़
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
नाम-ए-ख़ुदा तुझ ऊपर इस आन अजब समाँ है
-शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में
अब के होली में बनाना गुल को जोगन ऐ सबा
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किस की होली जश्न-ए-नौ-रोज़ी है आज
सुर्ख़ मय से साक़िया दस्तार रंग
-इमाम बख़्श नासिख़
पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसाल
जिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं
-कल्ब-ए-हुसैन नादिर
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
कुछ किसी का नहीं किसी को ख़याल
-रंगीन सआदत यार ख़ाँ
बहार आई कि दिन होली के आए
गुलों में रंग खेला जा रहा है
-जलील मानिकपूरी
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली
उठो यारो भरो रंगों से झोली
-शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
वो तमाशा ओ खेल होली का
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद
-फ़ाएज़ देहलवी
शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान
चाँद और तारे लिए फिरते हैं अफ़्शाँ हाथ में
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
सहज याद आ गया वो लाल होली-बाज़ जूँ दिल में
गुलाली हो गया तन पर मिरे ख़िर्क़ा जो उजला था
-वली उज़लत
बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
हर साल आवती है गर्मी में फ़स्ल-ए-होली
-वली उज़लत
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
भँवर काले के दफ़ बाजे है मौज ऐ यार पानी में
-शाह नसीर
तेरे गालों पे जब गुलाल लगा
ये जहाँ मुझ को लाल लाल लगा
-नासिर अमरोहवी
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
-मुसव्विर सब्ज़वारी
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
इश्क़ की इक रंगीन सदा पर बरसे रंग
रंग हो मजनूँ और लैला पर बरसे रंग
-स्वप्निल तिवारी
डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में
अब के होली में बनाना गुल को जोगन ऐ सबा
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
