आजादी के समय में भारत 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा था। इन रियासत के रजवाड़ों को कर, मालगुजारी और दूसरी चीजों से जितनी भी कमाई होती थी सब उनके हाथों में ही रहती थी। यही वजह थी कि राजा, रजवाड़ों, निजाम और महाराजा अपने शौक पूरा करने में कोई कोताही नहीं बरतते थे। उस समय ग्वालियर और भरतपुर के महाराजा के शौक की खूब चर्चा होती थी।

रॉल्स रॉयस से करते थे शिकार : भरतपुर के महाराजा अपने अनूठे शौक के लिए चर्चित थे। इन शौक में शिकार भी शामिल था। उन्होंने शिकार के लिए एक खास रॉल्स रॉयस बनवाई थी। जिसकी छत चांदी की थी। आमतौर पर हर रियासत के जंगलों पर वहां के राजा का ही पूरा अधिकार रहता था। उनमें रहने वाले पशु-पक्षी और विशेषतौर पर शेर उनकी बंदूक का निशाना बनने के लिए ही होते थे।

भरतपुर के महाराजा बचपन से ही शिकार के शौकीन थे और उन्होंने आठ साल की उम्र में पहला शेर मारा था। वे तमाम लोगों को शिकार पर भी ले जाते थे। इसमें प्रिंस ऑफ वेल्स और उनके नौजवान ए.डी.सी लॉर्ड लुई माउंटबेटन भी शामिल थे, जिन्हें महाराज अपनी रॉल्स रॉयस में काले चीतल के शिकार के लिए ले गए थे।

चर्चित लेखक और इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिड नाइट’ में लिखते हैं कि 35 साल के होने तक उन्होंने इतने शेरों का शिकार किया था कि उनकी खालों को सिलकर उनके महल के सभी स्वागत-कक्षों में दीवार से फर्श तक बिछा दिया गया था। ये महाराजा के लिए गर्व का विषय हुआ करता था।

मुर्गाबियों का शिकार कर बनाया था रिकॉर्ड: भरतपुर के ही महाराजा के राज्य में एक बार में इतनी मुर्गाबियां मारी गई थीं, जितनी दुनिया में पहले कभी नहीं हलाल की गई थीं। बकौल, लापियर और कॉलिन्स महाराजा ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के सम्मान में एक शिकार का आयोजन किया गया था। इसमें तीन घंटे के अंदर 4482 चिड़ियां मारी गई थीं। यह अनूठा रिकॉर्ड था।

ग्वालियर के महाराजा भी नहीं थे पीछे: आजादी के वक्त ग्वालियर के सिंधिरा राजघराने के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया थे। वो भी अपने शिकार के शौक के लिए चर्चित थे। ग्वालियर के महाराजा ने अपने जीवनकाल में 1400 से अधिक शेर मारे थे और उन्होंने गिने-चुने लोगों के लिए शेर के शिकार के गुर बताते हुए एक किताब भी लिख डाली थी।

रॉल्स रॉयस से लेकर ट्रेन तक का था शौक: ग्वालियर के महाराजा को गाड़ियों और ट्रेन में खास दिलचस्पी थी। उनके पास एक से बढ़कर एक रॉल्स रॉयस कारें थीं। महाराजा ने बिजली से चलने वाली चांदी की एक खास रेलगाड़ी भी बनवाई थी। यह रेलगाड़ी उनके दस्तरख्वान में एक टेबल पर बिछी थी। मेहमानों को इसी के जरिये खाना परोसा जाता था।