भारत देश में अनेक त्यौहार मनाये जाते है और हर त्यौहार का अपना अलग महत्व है। इन्हीं त्यौहारों में से एक है बसंत पंचमी का त्यौहार। हिन्दू धर्म में वसंत पंचमी यानी मां सरस्वती की पूजा का भी एक विशेष महत्व है हिन्दू धर्म में माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है तो स्वाभाविक है की इस सभी पढने वाले विद्यार्थी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन जिस प्रकार विशेष रूप से देवी सरस्वती की पूजा का अपना महत्व है उसी प्रकार पीले रंग को भी लोग इस दिन एक अलग रूप में महत्व देते हैं। पीले रंग हिन्दु शुभ रंग के रूप में देखते हैं।
बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, बल्कि खाने की चीजों में भी पीले चावल पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते है। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है। इसके अलावा लोग इस दिन पीले वस्त्र भी पहनते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं।
तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को माँ सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान और फलों को सरस्वती मां की मूर्तियों पर चढ़ाया जाता है। बसंत पंचमी को लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है इस मौके पर हर किसी की चाहत होती है कि वह इस मौके पर संगम में डुबकी लगाकर पवित्र हो जाए।
हिन्दू परंपरा में पीले रंग को बहुत शुभ माना जाता है। पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा और सौम्य उष्मा का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को बसंती रंग भी कहा जाता है। भारत में विवाह, मुंडन आदि के निमंत्रण पत्रों और पूजा के कपड़े को भी पीले रंग से रंगा जाता है। ग्रामीण इलाकों के लोग ज्यादातर बसंत ऋतु के शुरू होते ही पीली सरसों के खेतों में इस पर्व का आगाज करते हैं। वसंत ऋतु आने के बाद ही होली के त्यौहार की शुरूआत हो जाती है। बता दें कि फाल्गुन महीने में रंगों का त्यौहार होली मनाया जाता है
