काम पूरा होने पर तुरंत भुगतान के संबंध में पैगंबर मोहम्मद के फेमस कथन का हवाला देते हुए जज जीआर स्वामीनाथन ने मदुरै नगर निगम को अपने पूर्व वकील की बकाया फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया है। जस्टिस ने 19 दिसंबर को सुनाए गए एक आदेश में भुगतान में देरी के लिए नगर निकाय की आलोचना की और श्रम न्यायशास्त्र में निष्पक्षता के सिद्धांत पर जोर दिया।

1992 से 2006 के बीच मदुरै नगर निगम के स्थायी वकील के रूप में कार्यरत रहे पी. थिरुमलई द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने पैगंबर से संबंधित प्रसिद्ध निर्देश का हवाला दिया, “कर्मचारी को उसका पसीना सूखने से पहले भुगतान करो।” न्यायाधीश ने निगम को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हुए टिप्पणी की, “यह सिद्धांत निष्पक्षता का एक पहलू मात्र है और श्रम न्यायशास्त्र में सर्वथा लागू होता है। इसे वर्तमान मामले में भी लागू किया जा सकता है।”

कोर्ट ने दिया उदाहरण

उन्होंने ऐसे उदाहरण दिए जहां वरिष्ठ वकीलों को प्रति पेशी 4 लाख रुपये तक का भुगतान किया जाता था। उन्होंने निगम के आचरण से तुलना करते हुए कहा, “विश्वविद्यालय, जो यह दलील दे रहा है कि उसकी वित्तीय स्थिति ऐसी है कि वह अपने रिटायर्ड कर्मचारियों का बकाया भुगतान करने में असमर्थ है, अपने वकीलों को भारी शुल्क देने में कोई कठिनाई महसूस नहीं करता है।”

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पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीश ने आगे टिप्पणी की कि एडिशनल एडवोकेट जनरल अक्सर ऐसे छोटे-मोटे मामलों में पेश होते हैं जिन्हें एक नौसिखिया सरकारी वकील भी संभाल सकता है। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, “यह सब कुछ मामूली पैसों के लिए। उपस्थिति दर्ज कराना पैसों का मामला है। अब समय आ गया है कि लॉ ऑफिसरों को दी जाने वाली फीस के संबंध में लेखा-जोखा किया जाए।”

क्या है पूरा मामला

याचिकाकर्ता पी. थिरुमलई ने 14 सालों में निगम की ओर से 818 मामलों में प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने बताया कि कुल देय शुल्क 14.07 लाख रुपये था, जिसमें से केवल 1.02 लाख रुपये का भुगतान किया गया था, जिससे 13.05 लाख रुपये की बकाया राशि शेष रह गई थी। अदालत ने दर्ज किया कि वकील वर्तमान में बेहद दयनीय स्थिति में है और अपने दावों को साबित करने के लिए निर्णयों की सर्टिफाइड कॉपियां हासिल करने का खर्च भी वहन नहीं कर सकता है।

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