मद्रास हाई कोर्ट ने कांचीपुरम जिले के पुथागरम गांव में अनुसूचित जातियों की बस्तियों से मंदिर की गाड़ी निकालने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि आस्था को जाति या पंथ से नहीं बांधा जा सकता है। जस्टिस पीबी बालाजी ने सवर्ण हिंदुओं के एक वर्ग की ओर से दी गई इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि दशकों से चले आ रहे मंदिर मार्ग से हटकर अचानक नए मार्ग से गाड़ी निकालने की कोई जरूरत नहीं है।

न्यायाधीश ने एक रिट याचिका को स्वीकार करते हुए लिखा, “हम, एक समाज के रूप में समय के साथ विकसित हुए हैं, इसलिए स्थापित रीति-रिवाज, परंपरा और अभ्यास का हवाला देते हुए परिवर्तन का विरोध करना कभी भी निजी प्रतिवादियों के लिए एक वैध बचाव नहीं हो सकता है।”

क्या है पूरा मामला?

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, अब पूरे मामले की बात करें तो यह याचिका स्थानीय निवासी ए सेल्वराज ने अपने वकील एस. कुमारसामी के माध्यम से दायर की थी। इसमें एससी कैटेगरी के लोगों को पूजा के लिए मुथु कोलाक्की अम्मन मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत देने और गांव में उनकी बस्तियों से होकर मंदिर की गाड़ी को ले जाने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

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तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा के एस. आनंदन ने भी अपने वकील आर. थिरुमूर्ति के माध्यम से मामले में एक पक्षकार याचिका दायर की और रिट याचिकाकर्ता के इस तर्क का समर्थन किया कि गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ वास्तव में बहुत ज्यादा भेदभाव है। कोर्ट के निर्देश पर कलेक्टर ने राजस्व और पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर एक क्षेत्रीय निरीक्षण किया और एक रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया कि प्रस्तावित रास्ते पर मामूली सड़क मरम्मत के बाद मंदिर की गाड़ी को अनुसूचित जाति की बस्तियों से भी ले जाया जा सकता है।

हालांकि, गांव के कुछ सवर्ण हिंदू नेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वरिष्ठ वकील ने दशकों से अपनाए जा रहे मार्ग को बदलने की जरूरत पर सवाल उठाया और दावा किया कि कोई भी बदलाव भविष्य में कई अन्य लोगों के लिए इसी तरह के अनुरोध करने का द्वार खोल देगा। इस तरह के तर्क से सहमत न होते हुए जस्टिस बालाजी ने लिखा, “मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि निजी प्रतिवादियों को भविष्य के और आज की तारीख में अस्तित्वहीन दावों के बारे में चिंतित होना चाहिए।”

ईश्वर केवल कुछ गलियों में नहीं रहते

जस्टिस ने लिखा, “ईश्वर केवल कुछ गलियों में ही नहीं रहते। कोई भी गली रथ या उस पर सवार ईश्वर के लिए अयोग्य नहीं है। ईश्वर कभी भेदभाव नहीं करते। इसलिए, भेदभाव को परंपरा की पवित्रता में नहीं लपेटा जा सकता।”

मंदिर में एंट्री न दिए जाने की दूसरी शिकायत पर क्या बोले जस्टिस

अनुसूचित जाति के लोगों को पूजा के लिए मंदिर में प्रवेश न दिए जाने की दूसरी शिकायत पर जस्टिस ने कहा, “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है। इसलिए, कोई भी यह तय नहीं कर सकता कि कौन देवता के सामने खड़ा होकर पूजा करने का हकदार है और कौन नहीं।”

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