22 नवंबर से कोलकाता के ईडन गार्डंस मैदान पर भारत-बांग्लादेश की टीम एक ऐतिहासिक मुकाबला खेलेंगी। दोनों टीमें पहली बार डे-नाइट टेस्ट में खेलती नजर आएंगी। शीर्ष दस टेस्ट टीमों की बात करें तो ये दोनों देश आखिरी हैं जिन्होंने टेस्ट में इस बदलाव को स्वीकार किया है। पहली बार डे-नाइट टेस्ट 2015 में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इस मुकाबले की सबसे बड़ी खासियत है कि ये गुलाबी गेंद के साथ खेला जाता है। ऐसे में तमाम सवाल उठते हैं कि आखिर सफेद और लाल गेंद की बजाय डे-नाइट टेस्ट में आखिर पिंक बॉल की जरूरत है। इसकी क्या खासियत है।

ये खासियत है सबसे अहमः इस गुलाबी गेंद की सबसे बड़ी खासियत की बात करें तो ये गेंद रात के समय रोशनी (floodlights) में भी आसानी से दिखती है। वहीं, लाल गेंद जिससे टेस्ट खेला जाता है वो अंधेरे में कम रिफ्लेक्टिव होती है। इसी वजह से सामान्य टेस्ट मैच में भी आपने अंपायरों को खराब रोशनी के चलते कई बार मैच रोकते देखा होगा। क्योंकि इस गेंद की विजिबिलटी कम हो जाती है।

इसके अलावा गुलाबी गेंद लाल की तुलना में काफी ज्यादा चमकदार होती है जिससे रात के समय बल्लेबाजों और फील्डरों को उसे पिक करने में आसानी होती है। हालांकि इसको लेकर कई तरह की समस्याएं भी हैं। गुलाबी गेंद के साथ सबसे बड़ी चुनौती है कि वो कुछ ओवर के बाद ही अपनी चमक खो देती है। हालांकि तीसरे सेशन में इस गेंद के साथ बल्लेबाजी करना आसान नहीं होता। देखना होगा कि आखिर भारत-बांग्लादेश के लिए इस गेंद के साथ अनुभव किस तरह का रहता है।