भारत के लिए 121 साल के ओलंपिक इतिहास में सर्वश्रेष्ठ रहे टोक्यो ओलंपिक का रविवार 8 अगस्त को समापन हो गया है। क्लोजिंग सेरेमनी में भारत के ध्वजवाहक थे बजरंग पूनिया। इस समापन समारोह में ओलंपिक में भाग लेने वाले देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों के हाथ में अपने-अपने देश का झंड़ा था और सभी एक गोले में खड़े थे।

क्लोजिंग सेरेमनी के दौरान तिरंगे को कांस्य पदक विजेता बजरंग पूनिया ने लहराया। उनके साथ इस समापन समारोह में रेसलर दीपक पूनिया और भारतीय महिला हॉकी टीम की कुछ सदस्य भी दिखीं। टोक्यो ओलंपिक की क्लोजिंग सेरेमनी की थीम थी ‘Worlds We Share’ ।

121 साल के इतिहास का सर्वश्रेष्ठ ओलंपिक

टोक्यो ओलंपिक भारत के लिए अब तक का सर्वश्रेष्ठ ओलंपिक रहा है। इससे पहले भारत ने सर्वाधिक 6 मेडल 2012 के लंदन ओलंपिक में जीते थे जिसमें एक भी स्वर्ण नहीं था। वहीं इस बार भारत ने 7 मेडल जीते हैं जिसमें एक स्वर्ण पदक भी शामिल हैं। इस बार भारत ने 1 स्वर्ण, 2 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं। 1900 को पेरिस ओलंपिक में पहली बार प्रतिभाग करने के बाद 2021 में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।

48वें पायदान पर रहा भारत

टोक्यो ओलंपिक में 7 मेडल जीतने के बाद भारत 48वें पायदान पर रहा है। भारत इससे पहले रियो ओलंपिक में दो मेडल के साथ 67वें और लंदन ओलंपिक में 6 मेडल के साथ 57वें स्थान पर रहा था। टोक्यो ओलंपिक में 113 मेडल के साथ अमेरिका टॉप पर रहा है और उसके बाद दूसरे नंबर पर है चीन जिसके खाते में गए 88 मेडल। वहीं तीसरे नंबर पर है मेजबान देश जापान जिसने 58 मेडल पर कब्जा जमाया।

ये हैं टोक्यो के जांबाज

टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ी

टोक्यो में भारत के लिए पहले दिन वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतकर भारत की शुरुआत शानदार तरह से की थी। इसके बाद शूटर्स और तीरंदाजों ने निराश किया लेकिन मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने ब्रॉन्ज दिलाकर देश को दूसरा मेडल दिलाया। फिर भारतीय रेसलर रवि दहिया ने भी देश को टोक्यो में दूसरा सिल्वर मेडल दिलाया।

इसके बाद बारी थी फील्ड इवेंट की जहां शटलर पीवी सिंधु ने और भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने देश के लिए कांस्य पदक जीता। फिर आज आखिरी दिन बजरंग पूनिया ने पहले कांस्य पदक जीत उसके बाद रचा गया इतिहसा जिसके सूत्रधार थे नीरज चोपड़ा। उन्होंने अपनी गोल्डेन आर्म से ऐसा भाला फेंका की उनको कोई भी पीछे नहीं छोड़ सका।