द ग्रेट खली का नाम शायद ही किसी ने न सुना हो। WWE में अंडरटेकर से लेकर बिग शो तक को धूल चटाने वाले खली ने फर्श से अर्श का सफर तय किया है। खुशमिजाज और मेहनती खली ने अपने बचपन में बेहद गरीब दिन देखे हैं, लेकिन अपने कभी न हार मानने वाले हौसलों की बदलौत ही दलीप सिंह राणा द ग्रेट खली बन पाया। खास बातचीत में उन्होंने अपने बचपन के उस पल का खुलासा किया, जिसे जान आप भी हैरान रह जाएंगे। द ग्रेट खली ने ऐसा भी दौर देखा है जब उनके गरीब माता-पिता उनकी स्कूल फीस के महज ढाई रुपये नहीं भर पाए थे और इस कारण उनका नाम स्कूल से काट दिया गया था। उन्हें 8 साल की उम्र में पांच रुपये रोजाना कमाने के लिए गांव में माली की नौकरी भी करनी पड़ी थी। खली का बचपन में लोग कद की वजह से मजाक भी बनाते थे। लेकिन अपने मजबूत इरादों से खली ने वो मुकाम हासिल किया है जो आज से पहले कोई भारतीय पहलवान नहीं कर पाया। वह WWE में जलवा दिखाने वाले पहले भारतीय पहलवान बने।
आत्मकथा में बयां किया दर्द: खली और विनीत के. बंसल ने संयुक्त रूप से एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है “द मैन हू बिकेम खली”। इस किताब में वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियनशिप जीतने वाले इस धुरंधर पहलवान की जिंदगी के कई पहलुओं को सामने लाया गया है। किताब के मुताबिक, 1979 में गर्मियों के मौसम में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। बारिश नहीं होने से फसल बर्बाद हो गई थी और उनके माता-पिता के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे। उस दिन उनके क्लास टीचर ने पूरी क्लास के सामने उन्हें अपमानित किया था। इसके बाद साथी छात्रों ने भी मजाक उड़ाया, जिसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे कभी स्कूल नहीं जाएंगे।
उन्होंने कहा, इसके बाद मैं काम में जुट गया ताकि परिवार की मदद कर सकूं। एक रोज पिता के साथ था तो पता चला कि गांव में दिहाड़ी मजदूरी के लिए एक आदमी की जरूरत है। मजूरी रोजाना पांच रुपये मिलेगी। मेरे लिए उस वक्त पांच रुपये बहुत बड़ी रकम थी। ढाई रुपए नहीं होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था और पांच रुपये तो उससे दोगुने थे। खली ने कहा कि विरोध के बावजूद उन्होंने गांव में पौधे लगाने का काम किया।
देखिए कैसे खली ने दी थी अंडरटेकर को मात:
जब खली ने जीती थी वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप:
https://www.youtube.com/watch?v=ztFn9Uf1H_0
उन्हें पहाड़ से चार किमी नीचे गांव से नर्सरी से पौधे लाकर लगाने थे। सारे पौधे लगाने के बाद फिर नए लेने नीचे जाना पड़ता था। उन्होंने बताया, मुझे वह पल आज भी याद है जब मुझे पहली मजदूरी मिली थी। वह अनुभव मैं बयां नहीं कर सकता। वह कहते हैं कि मेहनत की बदौलत मैंने सब कुछ हासिल किया। मेरी मां प्यारी देवी के हाथ का खाना मुझे आज भी अच्छा लगता है, लेकिन अब वह बूढ़ी हो चुकी हैं।
होली से दो दिन पहले वह किसी के बुलावे पर भागलपुर आए थे। बहुत तामझाम न चाहने वाले खली को देखने के लिए युवाओं की भारी भीड़ जमा हो गई थी। नवगछिया ट्रेन से आने और जाने के दौरान वह सड़क जाम में फंसे। बिहारी युवकों में कुश्ती की ललक उन्हें इस वजह से भी दिखी कि उनके जालंधर स्थित ट्रेनिंग सेंटर में 200 में से 20 बिहारी हैं, जो रेसलर बनना चाहते है। उनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ की धक्कामुक्की और बदइंतजामी के कारण वह खासे परेशान नजर आए।