हाल में संपन्न इंटरनैशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (AIBA) में महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में भारत की एकमात्र पदक विजेता सोनिया लाठेर ने बताया कि वह इस खेल से अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए जुड़ी थीं जिसका उन्हें फायदा भी हो रहा है। इसके साथ ही सिस्टम से पूरी मदद ना मिलने के बावजूद वह उत्साह से भरी हुई हैं।

सोनिया ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप के फीदरवेट वर्ग (57 किग्रा) में रजत पदक जीता था जबकि एमसी मैरीकाम और एल सरिता देवी जैसी दिग्गज मुक्केबाज इस प्रतियोगिता के शुरुआती चरण में ही बाहर हो गई थीं।

हरियाणा के जींद की इस 24 साल की मुक्केबाज ने कहा कि उन्हें खुशी है कि उन्होंने ऐसे नामों को पीछे छोड़ा जिन्हें खेलते देखकर और सराहना करते हुए वह बड़ी हुईं लेकिन उन्हें अपने आप से और अधिक उम्मीद है।

सोनिया ने कहा, ‘मैं असल में थोड़ी निराश हूं, मुझे स्वर्ण पदक जीतना चाहिए था। मैं फाइनल में बेहद करीबी मुकाबले में हारी। लेकिन ऐसी टीम का हिस्सा होने जिसमें इतने बड़े नाम हैं और फिर पदक जीतना अच्छा है।’

सोनिया, इटली की एलेसिया मेसियानो से 1-2 से हार गई थीं। सोनिया ने आगे कहा, ‘मेरे परिवार में कोई भी मुक्केबाज या खिलाड़ी नहीं है और शुरुआत में मैं कबड्डी खिलाड़ी थी लेकिन इसके बाद मैं मुक्केबाजी से जुड़ी क्योंकि मैं अपने गुस्से को नियंत्रित करना चाहती थी। इसके अलावा व्यक्तिगत खेल में टीम खेल की तुलना में अधिक सम्मान मिलता है।’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं गुस्सैल हूं लेकिन मुक्केबाजी ने मुझे इससे निपटने में मदद की। मैंने 2008 में शुरुआत की और यह अब तक मेरे करियर का सबसे बड़ा पदक है।’

सोनिया ने एशिया चैम्पियनशिप 2012 की भी रजत पदक जीता था। उन्होंने कहा कि अगर ‘राजनीति’ नहीं होती तो वह काफी कुछ हासिल कर सकती थी। उन्होंने कहा, ‘हमारे तंत्र में काफी राजनीति है। हमेशा चयन निष्पक्ष नहीं होता। कभी कभी मुझे लगता था कि ट्रायल में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद मेरी अनदेखी हुई। तीन साल तक मुझे कोई मौका नहीं मिला, यह हताशा भरा था। लेकिन मैं हार मानने वालों में से नहीं हूं।’

सोनिया ने कहा, ‘दूर भागने की जगह मैं लड़ना पसंद करती हूं और मैंने ऐसा ही किया। मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और अंत में चीजें पक्ष में रही। इसलिए मैं खुश हूं।’