रियो ओलंपिक में महिला मुक्केबाजों ने कहा कि उन्हें अभी भी लिंगभेद और उपहास का सामना करना पड़ता है हालांकि बदलाव आ रहे हैं लेकिन उनकी गति मंद है। लंदन ओलंपिक 2012 में महिला मुक्केबाजी को पहली बार ओलंपिक में शामिल किया गया । लंदन में अमेरिका के लिये इस खेल में एकमात्र स्वर्ण जीतने वाली मिडिलवेट मुक्केबाज क्लारेस्सा शील्ड्स ने कहा कि उसे लगा था कि वह अगली पीढी के लिये प्रेरणा बनेगी लेकिन ना तो शोहरत मिली और ना ही प्रायोजक।

उन्होंने कहा ,‘‘ लंदन ओलंपिक के बाद पहले तीन साल मुझे कोई प्रायोजक नहीं मिला । मुक्केबाजी में महिलाओं और पुरूषों के साथ समान बर्ताव नहीं होता ।’’रियो ओलंपिक में सबसे अनुभवी मुक्केबाजों में से एक स्वीडन की अन्ना लारेल ने कहा ,‘‘ मैं 1997 से खेल रही हूं और शुरूआत में लड़के, बूढे मुझसे कहते थे कि इसे छोड़ दो , लड़कियां मुक्केबाजी नहीं करती । लेकिन अब बहुत कुछ बदल गया है ।’’

स्वर्ण जीतने का जश्न भी नहीं मना सके मर्रे
रियो ओलंपिक में पुरूष एकल टेनिस का स्वर्ण जीतने वाले ब्रिटेन के एंडी मर्रे खेलों के इस महासमर में लगातार दूसरे पीले तमगे का जश्न भी नहीं मना सके और उन्हें तुरंत सिनसिनाटी रवाना होना पड़ा। दुनिया के दूसरे नंबर के खिलाड़ी मर्रे ने चार घंटे तक चले मैराथन मुकाबले में अर्जेंटीना के जुआन देल पोत्रो को एकल फाइनल में 7 . 5, 4 . 6, 6 . 2, 7 . 5 से हराया। मुकाबला इतना लंबा खिंच गया कि मर्रे इसके बाद रूक नहीं सके चूंकि उन्हें करीब 5000 मील का सफर तय करके सिनसिनाटी पहुंचना था । मर्रे के पुराने दोस्त स्पेन के रफेल नडाल ने जेट प्लेन का बंदोबस्त किया था जिससे इन खिलाड़ियों ने सिनसिनाटी के लिये उड़ान भरी ।